भगवान श्रीगणेश प्रथम पूज्य हैं। उनकी आराधना से विद्या, बुद्धि, विवेक, यश, सिद्धि सहजता से प्राप्त हो जाते हैं। उनके कानों में वैदिक ज्ञान, मस्तक में ब्रह्मलोक, आंखों में लक्ष्य, दाएं हाथ में वरदान, बाएं हाथ में अन्न, सूंड में धर्म, पेट में सुख-समृद्धि, नाभि में ब्रह्मांड और चरणों में सप्तलोक हैं।
आदिपूज्य भगवान श्रीगणेश को व्रकतुंड, विघ्नहर्ता, मंगलमूर्ति आदि कई नामों से पुकारा जाता है। उनके हर नाम के साथ एक कथा जुड़ी हुई है। अक्षरों के अधिपति होने के कारण उन्हें श्रीगणेश कहा जाता है, इसलिए भगवान श्रीगणेश विद्या-बुद्धि के दाता कहे जाते हैं। भगवान शिव ने श्रीगणेश को वरदान दिया कि सभी देवताओं के पूजन में सबसे पहले पूजे जाने के अधिकारी वह ही होंगे। भगवान श्रीगणेश की रिद्धि और सिद्धि नामक दो पत्नियां हैं और शुभ-लाभ नामक दो पुत्र हैं। भगवान श्रीगणेश की पूजा में कभी भी तुलसी नहीं अर्पित की जाती है। महाभारत में उनके स्वरूप और उपनिषदों में उनकी शक्ति का वर्णन है। महर्षि वेदव्यास के कहने पर भगवान श्रीगणेश ने महाभारत का लेखन किया। दस दिन में महाभारत का लेखन संपन्न हो गया, लेकिन लगातार लिखने की वजह से भगवान श्रीगणेश का तापमान बहुत अधिक हो गया। इसलिए उन्हें सरोवर में डुबकी लगानी पड़ी। यही कारण है कि गणेश उत्सव पर दस दिन तक भगवान श्रीगणेश का पूजन करने के बाद अनंत चतुर्दशी को उन्हें नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। भगवान श्रीगणेश का वाहन डिंक नामक मूषक है। एक दंत होने के कारण भगवान श्रीगणेश को एकदंत भी कहा जाता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।