कोरोना संकट के चलते जारी लॉकडाउन से बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए केंद्र सरकार एक और आर्थिक पैकेज देने की तैयारी में है। इसके स्वरूप और आकार को लेकर हफ्ते भर से बैठकों का दौर जारी है। शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे लेकर कई बैठकें कीं।
शनिवार को पीएम ने वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण, गृहमंत्री अमित शाह, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री का जोर सबसे पहले असंगठित क्षेत्र सहित ऐसे उद्योगों की मदद करना है जिनसे तुरंत रोजगार पैदा हो सकें।
इसके लिए उन्होंने राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान जैसे संस्थानों को योजना के कार्यान्वयन की रिपोर्ट बनाने का जिम्मा दिया है। इससे पहले पीएम ने शुक्रवार को नागरिक उड्डयन, श्रम और ऊर्जा सहित विभिन्न मंत्रालयों के साथ बैठक की थी।
अधिकारियों ने दिया प्रेजेंटेशन
मंत्रालयों के अधिकारियों ने पीएम को अर्थव्यस्था दोबारा शुरू करने की योजना पर प्रेजेंटेशन दिया। इसकी रिपोर्ट के आधार पर पैकेज पर फैसला हो सकता है। देश के कामगारों में 80 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है। संगठित क्षेत्र में काम कर रहे 60 प्रतिशत कामगार एमएसएमई सेक्टर में हैं। लॉकडाउन के चलते इन दोनों सेक्टरों को बड़ा झटका लगा है। माना जा रहा है कि दूसरे पैकेज में सरकार बड़े उद्योगों से ज्यादा छोटे कारोबारी और कमजोर वर्गों पर ध्यान देगी।
आर्थिक रफ्तार अब तक की सबसे कम
लॉकडाउन के चलते आईएमएफ, बार्कलेज, स्टैंडर्ड एंड पुअर (एसएंडपी) जैसी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने लॉकडाउन की वजह से भारत के विकास की दर दो प्रतिशत से कम रहने की भविष्यवाणी की है। जबकि मूडीज ने इसी सप्ताह विकास दर 0.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है।
लॉकडाउन का बोझ नहीं उठा पाएंगी कंपनियां
अर्थशास्त्री डॉ. विकास कुमार सिंह के मुताबिक देश की शीर्ष 500 कंपनियों में कम से कम 100 ऐसी हैं जो दो माह से ज्यादा लॉकडाउन रहने पर ब्याज चुकाने और स्थायी खर्च उठाने में असमर्थ हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकनोमी के अध्ययन के मुताबिक देश में 14 करोड़ लोगों की अप्रैल में एक पैसे आमदनी नहीं हुई।
वहीं, 45 फीसदी परिवारों की आय घटी है। करीब 6.5 लाख लोगों ने भविष्य निधि खातों से 2,700 करोड़ रुपए निकाले हैं। पहले 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को रोज 32,000 करोड़ रुपये की चपत लगी। देश के 53 उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।