देश में कोरोना संक्रमण के सबसे पहले मामले 30 जनवरी को केरल में आए थे। लेकिन अभी तक वहां 602 मरीज पाए गए हैं जिनमें से सिर्फ चार की मृत्यु हुई है और 497 ठीक हो चुके हैं। कोरोना से लड़ने के केरल मॉडल की धूम आज भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में है।
केंद्र शासित प्रदेशों और उत्तर-पूर्व राज्यों के अलावा आज 3.5 करोड़ की आबादी वाले केरल से कम मामले केवल उत्तराखंड, हिमाचल, गोवा और छत्तीसगढ़ में ही हैं। केरल मॉडल के केंद्र में हैं वहां की 63 वर्षीय स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा जो कभी प्राइमरी स्कूल की एक शिक्षिका हुआ करती थीं। इसीलिए आज भी अधिकतर लोग उन्हें शैलजा टीचर के नाम से पुकारते हैं।
उन्होंने दिखा दिया इस संकल्प और लगन से भारत जैसे विकासशील देश के एक प्रदेश ने कोरोना पर पूरी तरह काबू पाकर दिखाया। जबकि ऐसा कर पाने में अमेरिका ही नहीं बल्कि यूरोप के सभी बड़े विकसित देश असफल रहे।
शैलजा को यह सफलता यूं ही नहीं मिल गई। पिछले 3 वर्षों में यह तीसरा वायरस संक्रमण है जिससे वे जूझ रही हैं। इससे पहले 2018 में निपाह वायरस और फिर पिछले वर्ष इबोला से लड़ने का उनका अनुभव कोविड-19 से लड़ाई में काम आया। लेकिन सबसे अधिक काम आई उनकी सजगता और सक्रियता।
केरल में भले ही पहला मरीज 30 जनवरी को चिन्हित किया गया लेकिन उस से दस दिन पहले शैलजा इंटरनेट पर चीन के वुहान में फैले संक्रमण को देखकर सजग हो गई थीं। उन्होंने अपने डॉक्टर सहयोगियों से पूछा कि क्या कोविड-19 केरल भी आ सकता है? उत्तर मिला- निश्चित रूप से। फिर क्या था, उन्होंने वुहान में चल रही मेडिकल तैयारियों की पूरी जानकारी ली और उसी के अनुसार अपनी तैयारियां भी शुरू कर दीं।
उन्होंने 23 जनवरी को स्वास्थ्य विभाग के सभी वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक ली। 24 जनवरी को राज्य मुख्यालय पर एक कोविड-19 टास्क फोर्स का गठन किया गया। अगले दिन प्रदेश के सभी 14 जिला मुख्यालयों पर इस टास्क फोर्स का एक केंद्र बनाया गया।
अगले 2 दिनों में सभी बड़े शहरों और कस्बों में विशेष कोविड-19 अस्पतालों को चिन्हित किया गया और उन्हें मास्क, दस्ताने, सैनिटाइजर और पीपीई किट जैसी जरूरी चीजें उपलब्ध कराई गई। बड़े अस्पतालों में विशेष कोविड-19 वार्ड बनाए गए। टेस्टिंग किट, वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडरों का इंतजाम किया गया।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कार्य था प्रदेश के चारों अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर विदेश से आने वाले यात्रियों के तापमान की जांच और उनकी निगरानी। यही वजह है कि जब 27 जनवरी को वुहान से आने वाली उड़ान में पहला संक्रमित यात्री मिला तो उसे पहचान कर तत्काल अस्पताल में भर्ती कर दिया गया। संदिग्ध यात्रियों को उनके घरों में क्वारंटीन किया गया।
धीरे-धीरे उन्होंने हर जिला मुख्यालय पर दो अस्पतालों को विशेष कोविड-19 घोषित किया और प्रदेश के सभी 10 मेडिकल कॉलेज में 500-500 बेड कोरोना के मरीजों के लिए सुरक्षित कर दिए। यही नहीं उन्होंने लोगों में भय दूर करने के लिए मलयाली भाषा में पर्चे छाप कर गांव गांव में बंटवाए। 25 मार्च को देशभर में लॉकडाउन घोषित होने के बाद उन्होंने पूरे प्रदेश के शिक्षकों को क्वारंटीन किए गए लोगों की निगरानी का जिम्मा दिया ताकि वह संक्रमण न फैला सकें।
फरवरी में इटली से लौटने वाले एक परिवार ने अपनी ट्रैवल हिस्ट्री छिपाई और मालूम चलने तक सैकड़ों लोगों के संपर्क में आ चुके थे। शैलजा ने उनके सभी संपर्कों को ट्रैक कराया और कोरोना का टेस्ट कराया। पूरे शहर में विज्ञापनों के जरिए सजगता फैलाई गई। नतीजा सिर्फ 6 लोग संक्रमित पाए गए।
एक समय केरल में 1.7 लाख लोग क्वारंटीन में थे। अब यह संख्या घटकर 20,000 से भी कम रह गई है। जिन संदिग्धों के घर में अलग बाथरूम नहीं था उन्हें सरकारी खर्चे पर क्वारंटीन किया गया। हालांकि उन्होंने सबसे खराब परिस्थिति के लिए भी तैयारी करते हुए होटलों, हॉस्टलों और कॉन्फ्रेंस हॉल में कुल मिलाकर पौने दो लाख इमरजेंसी बेड का इंतजाम कर लिया था।
जब एक परिवार में संक्रमण फैलने के बाद पूरे गांव में भी फैलने लगा और लोग गांव छोड़कर ही जाने लगे तो शैलजा ने स्वयं उस गांव में अपनी मेडिकल टीम जाकर एक रात बिताई। उन्होंने पंचायत में बैठक बुलाकर लोगों को समझाया कि अन्य व्यक्तियों से दो मीटर का अंतर बनाए रखने, मास्क लगाने और लगातार हाथ धोते रहने से उनके स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं है। तब भी यदि कोई संक्रमित व्यक्ति आसपास खांस या छींक रहा हो।
केरल में न सिर्फ साक्षरता की दर सबसे अधिक है बल्कि स्वास्थ्य और चिकित्सा का आधारभूत ढांचा भी सबसे अधिक मजबूत है। यहां हर गांव में एक प्राथमिक चिकित्सा केंद्र है। यही वजह है कि केरल के लोगों का जीवन काल देश में सबसे लंबा है।
शैलजा कहती है कि निपाह से लड़ते समय ही उन्हें एहसास हो गया था कि जिस वायरस का कोई इलाज न हो और ना ही उसकी कोई वैक्सीन हो तो उससे बचने में ही सुरक्षा है। यही ज्ञान कोरोना से लड़ाई में काम आया। साथ ही संदिग्ध मरीजों को पहचानना, आइसोलेशन वार्ड या क्वारंटीन में रखना और गंभीर मरीजों को समय पर उचित इलाज पहुंचाना केरल मॉडल की सफलता के मूल थे।
लेकिन शैलजा का काम अभी खत्म नहीं हुआ है। अब जब देश में लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू हो गया है और वंदे भारत मिशन के तहत विदेशों से अप्रवासी भारतीयों की दूसरी खेप लौटने लगी है, केरल में संक्रमण की दूसरी लहर आने का खतरा और बढ़ गया है। शैलजा कहती हैं – चिंता मत कीजिए। हम उसके लिए भी पूरी तरह तैयार हैं। हमने हर परिस्थिति के लिए प्लान ए, बी और सी तैयार कर रखे हैं।