कोरोना वायरस संक्रमण के उपचार में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) दवा के उपयोग को लेकर उठे विवाद पर भारतीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों में मतभेद दिख रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने मंगलवार को माना कि खाली पेट दवा लेने से दुष्प्रभाव होते हैं।

लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि जब तक हमारे पास कोई पूर्ण रूप से दवा या वैक्सीन नहीं आ जाती है, हम इसका आपात मामलों में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके उलट अन्य विशेषज्ञों ने देश में इसके इस्तेमाल को लेकर हुए शोध पर सवाल उठाए हैं।

एचसीक्यू दवा पर विवाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा सोमवार को कोरोना संक्रमण के इलाज में इसके उपयोग पर अस्थायी रोक लगाए जाने के कारण चालू हुआ है। भारत में दो दिन पहले ही आईसीएमआर ने इस दवा को प्रभावी बताते हुए नए दिशा निर्देश जारी किए थे, लेकिन अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में इस दवा को कोविड  उपचार में प्रभावी नहीं पाया था। प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल द लासेंट में प्रकाशित अध्ययन में भी एचसीक्यू दवा पर सवाल खड़े किए गए हैं। यह अध्ययन करीब 15 हजार कोरोना संक्रमितों के इलाज पर आधारित है।

लेकिन आईसीएमआर महानिदेशक से जब भारत और दुनिया के बाकी मेडिकल अध्ययनों के बीच एचसीक्यू को लेकर मिल रहे अंतर पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने सीधा जवाब न देते हुए कहा कि यह दवा फिलहाल एक आशा के रूप में है। भारत में इस दवा पर अध्ययन अभी चल रहे हैं।

जो लोग खाली पेट इस दवा का सेवन करते हैं, उन्हें पेट से संबंधित समस्या होती है। इसलिए इस दवा का सेवन कुछ खाने के बाद ही करना चाहिए। आईसीएमआर ने इस दवा का उपयोग हर मरीज के लिए करने को मंजूरी नहीं दी है। लेकिन आपातकालीन स्थिति में इस दवा का इस्तेमाल चिकित्सीय निगरानी में किया जा सकता है।

उधर, जैव नैतिकता विशेषज्ञ प्रो. अनंत भान का मानना है कि दुनिया भर के अध्ययनों में एचसीक्यू दवा को लेकर तमाम सबूत सामने आ चुके हैं। वहीं फोर्टिस अस्पताल के डॉ. अनूप मिश्रा का कहना है कि आईसीएमआर ने जिन आंकड़ों को सार्वजनिक किया है वह पर्याप्त नहीं हैं।

वहीं वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. एसपी कालांत्री का कहना है कि किसी भी अध्ययन में मरीजों की संख्या अहम भूमिका रखती है। भारत में बहुत सीमित लोगों पर यह अध्ययन हुआ है, जिसकी पूरी जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है।

अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रभावी बताने पर मिली थी चर्चा
दरअसल एचसीक्यू को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कोरोना के इलाज में प्रभावी बताए जाने पर चर्चा मिली थी। इसके बाद आईसीएमआर ने एनआईवी पुणे, दिल्ली एम्स और तीन अन्य अस्पतालों के अध्ययन का हवाला देते हुए कोविड उपचार में इसे प्रभावी बताया है।

इस दवा को दो महीने पहले भारत से अमेरिका भी भेजा गया था। इसके बाद ट्रंप ने स्वयं दवा का सेवन करने की पुष्टि भी की थी। इस दवा को लेकर चीन, अमेरिका, यूके, जापान सहित दुनिया के कई देशों में अध्ययन शुरू हुए, लेकिन अभी भारत को छोड़कर बाकी जगह अध्ययनों के परिणाम एक समान मिले हैं।

देश की एक और कंपनी उतरी कोरोना के इलाज की खोज में
देश की एक और कंपनी ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड ने भी मंगलवार को कहा कि वह कोरेना संक्रमण के इलाज की तलाश के लिए दो एंटी वायरल दवाओं फेविपीराविर और यूमीफेनोविर के कॉम्बिनेशन का नया चिकित्सकीय परीक्षण चालू करेगी। इसके लिए उसे दवा नियामक से अनुमति मिल चुकी है।

कंपनी ने कहा, इस अध्ययन के लिए देश के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती कोविड-19 संक्रमण के मध्यम स्तर वाले 158 मरीजों को पंजीकृत करेगी। फेविपीराविर का निर्माण जापान की फ्यूजीफिल्म होल्डिंग्स कॉरपोरेशन द्वारा एविगान ब्रांडनेम के तहत किया जा रहा है।

इसे 2014 में एंटी-फ्लू दवा के तौर पर मंजूरी मिली थी। यूमीफेनोविर को कुछ प्रकार के संक्रमित बुखारों के इलाज लिए रूस और चीन में उत्पादित किया जाता है। ग्लेनमार्क पहले से ही फेविपीराविर से कोरोना संक्रमण के इलाज का चिकित्सकीय परीक्षण कर रही है, जिसके रिजल्ट जुलाई या अगस्त में आने हैं। कई अन्य देश भी इस दवा पर परीक्षण कर रहे हैं।

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