एक अध्ययन में सामने आया है कि कोरोना वायरस से संक्रमित एसिम्टोमैटिक (ऐसे मरीज जिनमें बीमारी के लक्षण नहीं दिखाई देते) और प्रीसिम्टोमैटिक लोग बहुत अधिक संक्रामक होते हैं और आस-पास की चीजों को बहुत कम समय में संक्रमित कर सकते हैं।

अध्ययन के अनुसार 19 और 20 मार्च को चीन वापस गए दो छात्रों के होटल के कमरे की विभिन्न सतहों का परीक्षण किया गया। ये छात्र जब गए थे तब उनमें कोरोना वायरस का कोई लक्षण दिखाई नहीं दिया था। क्वारंटीन के दूसरे दिन इन छात्रों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी और इसके तीन घंटे बाद इन कमरों का परीक्षण किया गया।

इमर्जिंग इंफेक्शियस डिसीज जर्नल ऑफ दि यूएस सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन में छपे इस अध्ययन के अनुसार परीक्षण में कई सतहों पर कोरोना वायरस के आरएनए होने की पुष्टि हुई। इन सतहों में दरवाजों के हैंडल, लाइट स्विच, पानी की टंकियां, थर्मामीटर, टीवी रिमोट, तकिये, रजाई के खोल, चादरें, तौलिये, टॉयलेट सीट और फ्लश बटन शामिल थे।

शोधकर्ताओं ने कहा, ‘सतहों के सैंपल में Sars-CoV-2 आरएनए (जेनेटिक पदार्थ) का होना… यह इस बात की ओर इशारा करता है कि इससे संक्रमित लोगों के कपड़े बदलते वक्त या धुलते वक्त उचित सावधानी बरतने का क्या महत्व है।’

इस महामारी के प्रसार में तेजी किस वजह से आई है इस संबंध में शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा संक्रमण के लंबे इन्क्यूबेशन में रहने की वजह से हुआ है। आम तौर पर 5.1 दिन में लक्षण दिखने लगते हैं। कुछ लोगों में बिलकुल लक्षण नहीं दिखते और कुछ में हलके लक्षण दिखते हैं क्योंकि वे प्रिसिम्टोमैटिक होते हैं, लेकिन ये संक्रामक हो सकते हैं।

भुवनेश्वर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के महामारी विज्ञान और जन स्वास्थ्य के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अंबरीश दत्ता कहते हैं, ‘लॉकडाउन ने उन लोगों को बाहर निकलने से रोका जो संक्रमित थे और उनका परीक्षण नहीं हुआ था, लेकिन कम यात्रा प्रतिबंधों की वजह से जोखिम बढ़ने की संभावना है।’

उन्होंने कहा, लॉकडाउन हटने के बाद कोविड-19 से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनना और हाथ धोना हमारे एकमात्र हथियार रह जाएंगे, क्योंकि अभी तक हमारे पास इस महामारी का कोई इलाज या वैक्सीन नहीं है और जल्द ही इसके आने की संभावना भी नहीं दिख रही है।

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