बिहार चुनाव: मोदी मैजिक और ओवैसी फैक्टर रहे असरदार, पिछड़ने के बावजूद जुझारू नेता के रूप में उभरे तेजस्वी यादव

कोरोना काल में बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजे राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी संकेत हैं। इन चुनावों में भाजपा के शानदार प्रदर्शन से सूबे में एनडीए को बढ़त मिली है जिससे न सिर्फ केंद्र सरकार के कामकाज पर मुहर लगी है बल्कि मोदी मैजिक भी कायम रहा।

चुनाव के नतीजों से साफ है कि जदयू के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं के जरिये काफी हद तक कम करने में कामयाब रहे। इससे भाजपा का अपना प्रदर्शन भी बेहतर हुआ है। जबकि कोरोना संकट से उत्पन्न स्थिति, किसानों से जुड़े कानूनों तथा नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों से भाजपा कोई नुकसान हुआ नहीं लगता है। जबकि विपक्ष एनडीए-2 में इन मुद्दों पर सरकार की घेराबंदी करता रहा है। इसलिए भाजपा इस तरह से अब निश्चिंत हो सकती है।

भाजपा की अपनी सीटें बढ़ने से यह स्पष्ट है कि कोरोना संकट के चलते महानगरों से पलायन करके बिहार पहुंच प्रवासी मजदूरों ने बड़ी संख्या में भाजपा के पक्ष में मतदान किया। यदि उनमें नाराजगी होती तो यह उसके खिलाफ जाता। यह माना जा रहा है कि केंद्र सरकार द्वारा कोरोना संकट से निपटने के लिए शुरू की गई गरीब कल्याण योजना का फायदा मिला है। ये नतीजे यह भी कहते हैं कि कोरोना प्रबंधन को लेकर केंद्र सरकार की रणनीति से लोग संतुष्ट हैं।

यदि विपक्ष की रणनीति को देखें तो पिछड़ने के बावजूद तेजस्वी यादव जुझारू नेता के रूप में उभरे। लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन थोड़ा बेहतर होता और ओवैसी फैक्टर नहीं होता तो वह सरकार बना रहे होते। राजद जहां अपना 2015 जैसा प्रदर्शन दोहराने में करीब-करीब सफल रहा, वहीं कांग्रेस पिछला प्रदर्शन भी नहीं दोहरा पाई। हां, वामदलों को महागठबंधन में लेने का फायदा जरूर हुआ और उनकी सीटें अच्छी-खासी बढ़ती हुई दिख रही है।

विपक्ष द्वारा एआईएमआईएम को गंभीरता से नहीं लेना भी उसकी बड़ी चूक रही। एआईएमआईएम आधा दर्जन सीटों पर बढ़त लेती दिख रही है। आगे जाकर पता चलेगा कि कितनी और सीटों पर उसने महागठबंधन के वोट काटे हैं। चुनाव के नतीजे सत्ता पक्ष के आत्मबल को मजबूत करते हैं। जबकि विपक्ष में राजद के लिए निराशाजनक नहीं हैं। लेकिन कांग्रेस के लिए उम्मीद नहीं जगाते हैं।

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