तीन साल पहले चंद्रधर दास को एक ट्रिब्यूनल ने विदेशी घोषित कर दिया था और भारतीय नागरिक साबित होने से पहले ही रविवार रात 104 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई। छार जिले के अमराघाट में बाराबस्ती के अपने घर में उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली। उसी दिन उऩके परिवार वालों ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया. बताया गया है कि उनकी अंतिम इच्छा थी कि वो एख भारतीय नागरिक के रूप में मरे लेकिन वो पूरी न हो सकी।
विदेशियों के ट्रिब्यूनल द्वारा एक पूर्व पक्षपातपूर्ण निर्णय के माध्यम से जनवरी 2018 में दास को एक विदेशी घोषित किया गया था, बताया जाता है कि वो उऩके सामने अपनी नागरिकता साबित करने में विफल रहे थे। जिसके बाद उन्हें मार्च में सिलचर की केंद्रीय जेल में भी भेजा गया था, लेकिन उन्हें हिसारत में लिए जाने के बाद सार्वजनिक रूप से बहुत हंगामा हुआ जिसके बाद जून में उन्हें रिहा कर दिया गया था।
चंद्रधर दास 1955 में पूर्व पाकिस्तान (1971 के बाद बांग्लादेश) से भारत आए थे। लेकिन त्रिपुरा में उन्हें जारी शरणार्थी प्रमाणपत्र वहां के अधिकारियों द्वारा सत्यापित नहीं किया गया था। नियमों के अनुसार, 1971 से पहले असम में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिक माना जाता है। प्रमाणपत्र न होने की वजह से उनकी नागरिकता का मामला हल नहीं हो सका।
चूंकि दास को एक विदेशी माना जा चुका था इसी चलते उनके तीन बच्चे और पोते असम से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से बाहर हो गए, जो कि 1951 के बाद पहली बार अपडेट किया गया था और पिछले साल अगस्त में प्रकाशित हुआ था। NRC में भारतीय नागरिकों की पहचान करना और अवैध विदेशियों की पहचान करना शामिल था, इसकी सूची में शामिल होने के लिए आवेदन करने वाले 33 लाख लोगों में से 1.9 लाख को बाहर कर दिया था।
दास की बेटी नियति बताती हैं कि उनके पिता की अंतिम इच्छा थी कि वो एक भारतीय नागरिक के रूप में मरे। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के बाद उनकी उम्मीदें जाग उठीं थी। जिसमें बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदुओं, जैनियों, सिखों, ईसाइयों, पारसियों और बौद्धों को नागरिकता देने का प्रस्ताव दिया गया था, इसे पिछले साल दिसंबर में संसद द्वारा पारित किया गया था। जिसे लेकर पूरे देशभर में विरोध प्रदर्शन भई हुए थे।