आखिर क्यों हाई प्रोफाइल हो गया हैदराबाद नगर निगम चुनाव? ओवैसी के गढ़ में BJP ने क्यों झोंक दी पूरी ताकत

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बाद रविवार को गृह मंत्री अमित शाह ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में पूरी ताकत से प्रचार करते दिखे। स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर, तेजस्वी सूर्या, देवेंद्र फडनवीस इससे पहले ही प्रचार करके माहौल बना चुके हैं। टीम भाजपा 1 दिसंबर को होने वाले इस चुनाव को जीतने के लिए जी जान से जुटी है। दिग्गजों के प्रचार में उतरने से चुनाव हाईप्रोफाइल हो गया है। लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा छोटे से निगम चुनाव को लेकर फिक्रमंद क्यों है? क्या इसकी वजह हर चुनाव को गंभीरता से लेने की भाजपा की आदत है या फिर कोई बड़ी रणनीति है? आइए जानते हैं इसकी असल वजह…

जनाधार बढ़ाना चाहती है भाजपा:

हैदराबाद नगर निगम की कुल 150 निकाय सीटों के लिए 1 दिसंबर को मतदान होगा। पिछले चुनाव में भाजपा को सिर्फ चार और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को 44 सीटें मिलीं थीं। बिहार विधानसभा चुनाव में भी एआईएमआईएम को पांच सीटें मिलने के कारण भाजपा असदुद्दीन की पार्टी को गंभीरता से लेनी लगी है। पार्टी ने भूपेंद्र यादव को हैदराबाद निकाय चुनाव का प्रभारी बनाकर ऐसे संकेत दिए हैं। इसलिए भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के साथ-साथ एआईएमआईएम को उसके घर में घेरना चाहती है।

निकाय चुनाव केंद्र तक पहुंचने की सीढ़ी :

ऐसा लगता है कि भाजपा निकाय चुनावों को राज्य की सत्ता हथियाने का जरिया समझती है। साल 2018 के हरियाणा निकाय चुनाव में भाजपा ने पूरा दम लगाकर करनाल, पानीपत, यमुनानगर, रोहतक और हिसार के पांच नगर निगमों पर कब्जा कर लिया। इससे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में सत्ता गंवाने वाली पार्टी के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ गया। भाजपा को इसका फायदा वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में मिला।

सांगठनिक विस्तार:

भाजपा की सफलता का मूल मंत्र सांगठनिक विस्तार है। साल 2014 के बाद से इस विस्तार को बहुत ज्यादा तवज्जो मिल रही है। पार्टी अब जमीनी स्तर पर अपनी मजबूती के लिए छोटे-छोटे अवसरों को भी बड़े आयोजनों में तब्दील कर देती है। छोटे आयोजनों में बड़े नेताओं के आने से स्थानीय स्तर के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ता है। एक तरफ शीर्ष नेताओं को छोटी-छोटी जगहों पर भी पार्टी की स्थिति की सही जानकारी होती है तो दूसरी तरफ कार्यकर्ता भी बड़े नेताओं के सामने अपनी समस्या रख पाने में सक्षम होते हैं। इस वजह से नीचे से ऊपर तक के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच गैप नहीं रहता।

बंगाल और ओडिशा कनेक्शन:

हैदराबाद नगर निगम चुनाव को हाई प्रोफाइल बनाने में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और ओडिशा के नताओं की बयानबाजी ने भी भूमिका निभाई है। खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं कि उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी किसी केंद्रीय मंत्री को नगरपालिका की बैठकों में भाग लेते नहीं देखा था। पश्चिम बंगाल में निकाय चुनाव होने वाले हैं जो कोरोना के कारण टल गए थे। ममता अच्छी तरह समझती हैं कि भाजपा के लिए निकाय चुनाव क्षेत्रीय पार्टियों को निपटाने के हथियार हैं। इसी रणनीति के तहत भाजपा पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और ओडिशा में नवीन पटनायक सरकार के खिलाफ खुद को मजबूत करने में जुटी है। इसी तरह ओडिशा के निकाय चुनाव में मजबूती की बदौलत साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शहरी इलाकों में जबर्दस्त समर्थन हासिल किया। बीजेडी के कैंडिडेट भुवनेश्वर समेत कई शहरी क्षेत्रों में हार गए। बीजेपी ने 2017 के पंचायत चुनावों में भी बेहतर प्रदर्शन किया। 2012 में उसके अंदर 853 में से सिर्फ 12 जिला परिषद थे जो बढ़कर 306 हो गए, जबकि बीजेडी 651 से घटकर 460 पर आ गई।

ओवैसी बोले-बस ट्रंप का आना बाकी:

हैदराबाद चुनाव में भाजपा ने अपने स्टार नेताओं की फौज उतारी तो एआईएमआईएम प्रमुख ओवैसी ने तंज कसा कि-बस अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप का आना बाकी रह गया है। इसके पहले ओवैसी ने हैदराबाद में रैली को संबोधित करते हुए शनिवार को कहा कि ऐसा नहीं लग रहा है कि ये निगम का चुनाव है, ऐसा लग रहा है कि हम प्रधानमंत्री चुन रहे हैं। हैदराबाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रोड शो के बाद से ही ओवैसी बंधु ने अपनी रणनीति को धार देना शुरू कर दिया है। वे घूम-घूम कर कह रहे हैं कि हम मोदी-योगी से नहीं डरते हैं। ग्रेटर हैदराबाद की 10 विधानसभा सीटों में से 7 पर 50 फीसदी से ज्यादा आबादी मुसलमानों की है।  इन पर ओवैसी की पार्टी का कब्जा है। निगम चुनाव में ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने कुल 51 उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इसमें से 46 उम्मीदवार मुस्लिम उम्मीदवार हैं और पांच टिकट हिंदू उम्मीदवारों को दिए गए हैं। यानी कि ओवैसी की पार्टी ने 10 फीसदी टिकट हिंदू उम्मीदवारों को दिए हैं। एआईएमआईएम का मुकाबला भाजपा से है।

भाजपा के खिलाफ टीआरएस प्रमुख ने संभाला मोर्चा:

हैदराबाद नगर निकाय चुनाव को लेकर जुबानी जंग का दौर तेज होता जा रहा है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अमित शाह के चुनाव प्रचार से पहले ही हैदराबाद के लोगों को आगाह कर दिया। उन्होंने लोगों से शहर को विभाजनकारी ताकतों से बचाने की अपील की है। मुख्यमंत्री ने कहा-कुछ विभाजनकारी ताकतें हैदराबाद में घुसने और तबाही मचाने की कोशिश कर रही हैं, यह चुनाव हैदराबाद की शांति को बचाने के लिए है। पिछली बार हुए चुनाव में 99 सीटें जीतकर राज्य की सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति(टीआरएस) ने मेयर पद पर कब्जा जमाया था। इस बार भी पार्टी मेयर पद पर कब्जा बरकरार रखने के लिए जी जान से चुनाव प्रचार में जुटी है।

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