कोरोना का प्रकोप वाकई इंडस्ट्री के कई सेक्टर के लिए कहर साबित हुआ है. कोरोना से जीडीपी में प्रमुख योगदान रखने वाले निजी उपभोग, निवेश और विदेशी व्यापार तीनों पर बुरी तरह से मार पड़ी है. इसकी वजह से करोड़ों की संख्या में नौकरियां जाने की आशंका है. आइए जानते हैं कि कोरोना के कहर से किन सेक्टर को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है? और इनकी आगे की राह कैसी हो सकती है?

कोरोना से सबसे ज्यादा नुकसान एविएशन सेक्टर को हुआ है. कोरोना की वजह से दुनिया के कई देशों में लॉकडाउन है. भारत में भी उड़ानें पूरी तरह से बंद हैं. इस सेक्टर में सैलरी में कटौती और छंटनी शुरू हो गई है. भारत में ही इस सेक्टर में हजारों नौकरियां जाने की आशंका है. जानकार तो यहां तक चेतावनी दे रहे हैं ​कि अगर लॉकडाउन लंबा खिंचा तो कई एयरलाइंस के बंद होने की नौबत आ सकती है. ग्लोबल बिजनेस एडवाइजरी फर्म केपीएमजी के अनुसार, एविएशन के लिए यह 2008-09 की मंदी से भी बड़ा संकट है.

कोरोना का कहर होटल एवं रेस्टोरेंट जैसे हॉस्पिटलिटी सेक्टर को भी भारी पड़ रहा है. उड़ानें बंद होने, ट्रांसपोर्ट एवं ट्रैवल पर पूरी तरह से रोक हो जाने की वजह से होटल एवं रेस्टारेंट भी बंद पड़े हैं. लॉकडाउन खुलने के बाद घरेलू ट्रांसपोर्ट चलने से इस सेक्टर में थोड़ा कारोबार मिल सकता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के आने में तो अभी कई महीने लग सकते हैं. घरेलू स्तर पर भी लोग आगे महीनों तक रेस्टोरेंट या भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने में हिचकेंगे. ऐसे में इस सेक्टर में भी बड़े पैमाने पर छंटनी की आशंका जताई जा रही है.

कोरोना की वजह से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) वाले सेक्टर को भी भारी नुकसान होने की आशंका जाहिर की जा रही है. इसीलिए इस सेक्टर को राहत पैकेज देने की डिमांड बढ़ने लगी है. सरकार जल्द ही इस सेक्टर के लिए राहत पैकेज का ऐलान कर सकती है.

PHD चैम्बर (यूपी चैप्टर) के को-चेयरमैन मनीष खेमका कहते हैं, ‘सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है. बहुत बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार होंगे. इसलिए एमएसएमई को सहारा देना बहुत जरूरी है जो रोजगार के बहुत बड़े स्रोत हैं. एमएसएमई को इस समय तत्काल राहत की जरूरत है और सरकार को इसमें देर नहीं करनी चाहिए. अभी दवा की जरूरत है तो सरकार को मदद करनी चाहिए. राज्य सरकारें भी इस मामले में केंद्र के कदम का इंतजार कर रही हैं. एमएसएमई के लिए नकद सहायता से कम कुछ कारगर नहीं होने वाला है. कनाडा, अमेरिका से लेकर एशिया में बांग्लादेश तक कई देशों ने अपने उद्योगों को नकद सहायता पहुंचाई है.’

उन्होंने कहा कि बांग्लादेश सरकार ने 2 फीसदी के मामूली ब्याज पर कर्मचारियों को लोन जैसी सुविधाएं दी हैं ताकि सैलरी संकट आने पर वे अपना खर्च चला सकें. भारत में भी एमएसएमई कर्मचारियों को ऐसे लोन या सैलरी सहायता जैसी योजना शुरू की जा सकती है.

आल इंडिया मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (AIMA) की एक रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन यदि लंबा चला और सरकार से कोई मदद नहीं मिली तो करीब 7.5 करोड़ एमएसएमई यूनिट बंद हो सकते हैं. यह सेक्टर नोटबंदी के झटके से अभी उबरा ही था कि इसके सामने एक नया संकट आ गया. इस सेक्टर का जीडीपी में योगदान करीब 30 से 35 फीसदी होती है और इसमें 11 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इनका कारोबार ठप है और इनके पास ज्यादा पूंजी न होने, कई बार निर्यात पर निर्भरता की वजह से इनको अपने कर्मचारियों के लिए सैलरी देना भी मुश्किल है. ऐसे में कर्जों को चुकाना, जीएसटी भरना तो उनके लिए अतिरिक्त बोझ की तरह है.

कोरोना की सबसे पहले और सबसे ज्यादा चोट खाने वाले सेक्टर में टूरिजम यानी पर्यटन भी है. दुनिया के देशों में लॉकडाउन खुलता भी है तो अभी महीनों या कम से कम एक साल तक लोग टूर और गैर जरूरी ट्रैवल से बचकर रहना चाहेंगे. ऐसे में इस सेक्टर से जुड़े लाखों लोगों की रोजी पर गंभीर संकट है. केपीएमजी की रिपोर्ट कहती है कि भारत में टूरिज्म और हॉस्पिटलिटी, दोनों सेक्टर को मिलाकर करीब 3.8 करोड़ नौकरियां जा सकती हैं.

इंडस्ट्री चैम्बर सीआईआई का तो कहना है कि ब्रांडेड होटलों, टूर ऑपरेटर्स , ट्रैवल एजेंसी आदि को कुल मिलाकर करीब 1.58 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. इसी तरह ऑनलाइन ट्रैवल एजेंसियों को 25,000 करोड़ और एडवेंचर टूर ऑपरेटर्स को करीब 19,000 करोड़ का नुकसान हो सकता है. इस सेक्टर को सहयोग के लिए सरकार सॉफ्ट लोन, वर्किंग कैपिटल देने, लोन की वसूली टालने जैसे उपाय कर सकती है.

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