देश में लॉकडाउन की वजह से जारी मजदूरों के संकट के मद्देनजर केंद्र सरकार 41 साल बाद प्रवासी मजदूरों की परिभाषा बदलने वाली है। इसके अलावा सरकार की योजना कर्मचारी राज्य बीमा निगम के तहत सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य लाभ तक पहुंच को सक्षम करने के लिए उन्हें पंजीकृत करने की है।

लॉकडाउन के दौरान अनौपचारिक और औपचारिक अर्थव्यवस्था में लाखों श्रमिकों के बड़े पैमाने पर प्रवास के बाद सामाजिक सुरक्षा पर एक नया कानून प्रस्तावित हैं, जिसे श्रम मंत्रालय जल्द ही केंद्रीय मंत्रिमंडल में लेकर जाएगा। कैबिनेट इस साल के अंत तक इस कानून को बनाने की योजना बना रहा है।

श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि कानूनी ढांचे को मजबूत किया जा रहा है और बीजू जनता दल सांसद भर्तृहरि महताब की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति द्वारा प्रस्तावित संहिता में कुछ प्रावधानों को मंजूरी दे दी गई है। जिसमें आगे बदलाव किया जा सकता है।

सरकार के नए कदमों को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि वर्तमान कानूनी ढांचा अपर्याप्त है। प्रवासियों के पलायन से सामने आया कि उनके रोजगार का रिकॉर्ड तक नहीं है। इसने सरकार को कानून में बदलाव करने को लेकर प्रेरित किया। अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिक अधिनियम, 1979 पांच या अधिक अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों के साथ प्रतिष्ठानों पर और उनकी भर्ती में शामिल ठेकेदारों के लिए लागू होता है।

एक अधिकारी ने कहा, ‘इसका मतलब यह होगा कि अधिकांश प्रवासी श्रमिक आज कानून के दायरे से बाहर होंगे।’ प्रस्तावित कानूनी ढांचा व्यक्तिगत प्रवासी श्रमिकों पर लागू होगा जो घरेलू ढांचे के अंतर्गत एक तय राशि तक कमाते हैं। वहीं उच्चतम मजदूरी को एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से परिभाषित किया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि इन श्रमिकों को देश भर में पोर्टेबिलिटी के लाभों का आनंद मिलेगा और हर साल एक बार घर जाने का किराया दिया जाएगा।

नए कानून के जरिए असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को एक असंगठित श्रमिक पहचान संख्या (यू-विन) आवंटित किया जाएगा, जो 2008 में एक कानून के माध्यम से निर्धारित किया गया था, लेकिन इसपर बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई है। केंद्र अब श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा लाभ जैसे पेंशन और स्वास्थ्य सेवा में पंजीकरण करके इसे आकर्षक बनाने की कोशिश कर रही है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here