पूरी दुनिया में कोरोना वायरस (Coronavirus)  से जंग के बीच ‘व्यापारिक युद्ध’ भी अंदर ही अंदर शुरू हो चुका है. भारत में नीति-निर्धारक में कोरोना वायरस की वजह से उपजीं चुनौतियों के बीच नए संभावनाओं को भी देख रहे हैं. चीन भले ही कहे कि उसने कोरोना पर काबू पा लिया है लेकिन उसके यहां कई विदेशी कंपनियों की यूनिटें बाहर आने के लिए तैयार बैठी हैं उसकी वजह अमेरिका का उसको लेकर अविश्वास है और भारत सरकार की कोशिश इस बात की है ये यूनिटें  उसकी जमीन पर लगाई जाएं.  इस बात का अंदाजा इस बात से हाल ही में दिए उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के बयान से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा कि राज्य सरकार चीन से मोह भंग हुई कंपनियों के लिये विशेष पैकेज व सहूलियत देने को तैयार है.

यूएस-इंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप फोरम के तत्वावधान में अमेरिकी कंपनियों के साथ वीडियो कन्फ्रेंसिंग पर चर्चा करने वाले प्रदेश के कुटीर, लघु एवं मझोले उद्योग मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि बातचीत बेहद उत्साहजनक रही.  सिंह ने कहा कि चीन में अमेरिका ने खासा निवेश किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चीन से अमेरिकी कंपनियों के अपना कारोबार समेटने में भारत, खासकर उत्तर प्रदेश के लिए अवसर देख रहे हैं. वे इस अवसर का लाभ उठाना चाहते हैं.

उन्होंने बताया अमेरिका की 100 कंपनियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग हुई और उन सभी ने उत्तर प्रदेश में अपना कारोबार जमाने में दिलचस्पी दिखाई.  सिंह ने बताया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में शामिल हुई कंपनियों को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लागू की गई क्षेत्र विशेष संबंधी नीतियों के बारे में विस्तार से बताया गया. इनमें रक्षा, औषधि, खाद्य प्रसंस्करण, इलेक्ट्रॉनिक्स और शिक्षा क्षेत्र शामिल हैं.

इसी तरह केंद्रीय नितिन गडकरी ने भी कहा कि भारत को कोरोना वायरस महामारी के बीच चीन के लिए विश्व की ‘‘घृणा” को बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश आकर्षित करके अपने लिए आर्थिक अवसर के रूप में देखना चाहिए.

लेकिन ऐसा नहीं है कि चीनी से विदेशी कंपनियों को भारत में बुलाने का लक्ष्य सिर्फ बयानों तक ही सीमित नहीं है. केंद्र सरकार इस पर काम भी रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को कोरोना वायरस महामारी के बीच अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये स्थानीय निवेश बढ़ाने के साथ साथ अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करने के विभिन्न उपायों पर विस्तार से चर्चा की है.  एक आधिकारिक बयान में बताया गया कि बैठक में देश में तेज रफ्तार से निवेश लाने और भारतीय घरेलू क्षेत्र को बढ़ावा देने की विभिन्न रणनीतियों पर चर्चा हुई.

इस बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल समेत अन्य लोग शामिल हुए.  बयान में बताया गया कि निवेश आकर्षित करने के मामले में अधिक तत्परता दिखाने और अपनी अपनी रणनीतियां बनाने के लिये राज्यों का मागदर्शन करने पर भी बैठक में चर्चा की गयी.

इस दौरान यह भी चर्चा की गयी कि विभिन्न मंत्रालयों द्वारा सुधारों को लागू करने की पहल को निरंतर जारी रखा जाना चाहिये. इसके साथ ही निवेश एवं औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के मार्ग में मौजूद किसी भी बाधा को दूर करने के लिए समयबद्ध तरीके से ठोस कदम उठाये जाने चाहिये.

बैठक में इस बात पर भी चर्चा की गयी कि देश में मौजूदा औद्योगिक भूमि, भूखंडों, परिसरों आदि में पहले से परखे क्षेत्रों की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिये एक योजना विकसित की जानी चाहिये और इन्हें जरूरी वित्तीय समर्थन भी उपलब्ध कराया जाना चाहिये.

मोदी ने बैठक के दौरान सभी संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि निवेशकों को बनाये रखने, उनकी समस्याओं को देखने तथा उन्हें समयबद्ध तरीके से सभी आवश्यक केंद्रीय और राज्य मंजूरियां प्राप्त करने में मदद करने के हर संभव कदम सक्रियता से उठाये जाने चाहिये. एक तरह से क्लियरेंस के लिए सिंगल विंडो बनाने पर जोर दिया गया.

आपको बता दें कि इसी महीने कोरोना महामारी (Coronavirus) के दौरान चीनी निवेश और भारतीयों कंपनियों के टेकओवर को रोकने के लिए सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए एफडीआई नियमों में बड़ा बदलाव किया है. इस बदलाव के बाद कोई भी विदेशी कंपनी किसी भारतीय कंपनी का अधिग्रहण विलय नहीं कर सकेगी. दुनिया भर में जारी कोरोना संकट के चलते वैश्व‍िक अर्थव्यवस्था के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था को भी गहरा धक्का लगा है. ऐसे में भारतीय कंपनियों का वैल्युएशन काफी गिर गया है. सरकार को लगता है कि कोई विदेशी कंपनी इस मौके का फायदा उठाते हुए मौकापरस्त तरीके से किसी देसी कंपनी का अधिग्रहण कर सकती है और उसे उसे खरीद सकती है.

भारत के इस कदम से चीन बौखला  गया और उसने नये नियमों को ‘भेदभावपूर्ण’ बताते हुये उसकी आलोचना की और उसमें संशोधन की मांग की. उसने कहा कि भारत को ‘खुला, निष्पक्ष और न्यायसंगत’ व्यावसायिक परिवेश बनाते हुये विभिन्न देशों से आने वाले निवेश को समान रूप से देखना चाहिये.  चीन ने कहा है कि एफडीआई नियमनों में किये गये बदलावों से कुछ खास देशों से आने वाले निवेश के समक्ष ‘अतिरिक्त अवरोध’ खड़े किये गये हैं. ये बदलाव विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के भेदभाव रहित परिवेश के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं.

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