विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन में कोरोना से बचने का सबसे अच्छा विकल्प सोशल डिस्टेंसिंग, बार-बार हाथ धुलना और मास्क पहनना है। दुनिया में जब तक इन तीनों विकल्पों पर पूर्ण रूप से अमल किया जाता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस सबके बीच चीन से लगे एक छोटे से देश हॉन्गकॉन्ग ने लोगों की सुरक्षा के लिए सक्रियता दिखाई। रातोंरात स्कूल बंद कर दिए, शहर में पोस्टर लगा दिए कि हर दो घंटे में हाथ धोते रहें। घर से बाहर निकलने पर फेस मास्क जरूर लगाएं। लोग भी पीछे नहीं रहे। यहां पर मास्क पहनने का आंकड़ा 100% दर्ज किया गया। नतीजा सबके सामने है। 75 लाख की आबादी वाले इस देश में कोरोना से सिर्फ 4 जान गईं। 1038 संक्रमितों में से 830 लोग स्वस्थ भी हो चुके हैं। देशवासियों को सर्जिकल मास्क की कमी न पड़े, इसके लिए यहां के जेल में बंद कैदी हर महीने 25 लाख मास्क बना रहे हैं। इस दौरान पश्चिम देशों में मास्क की जरूरत और उसकी क्षमता पर ही बहस होती रही और कई हफ्ते इसी में निकल गए।

हॉन्गकॉन्ग के लोगों ने मास्क पर भरोसा इसलिए जताया, क्योंकि वे 17 साल पहले सार्स महामारी ने यहां कहर बरपाया था। इससे सबक लेते हुए यहां प्रशासन ने व्यापक स्तर पर मास्क बनाने का काम शुरू किया। हॉन्गकॉन्ग के सर्वव्यापी मास्क के पीछे की कहानी भी काफी अनोखी है। दरअसल, हॉन्गकॉन्ग में लाखों की संख्या में सर्जिकल मास्क यहां के कैदी बना रहे हैं, जिनमें से अनेक तो अतिरिक्त पैसों के लिए देर रात तक काम कर रहे हैं। चीन से लगने वाली सीमा पर मध्यम स्तर की सुरक्षा वाली लो वु जेल में फरवरी से 24 घंटे मास्क बनाने का काम चल रहा है। कैदियों के साथ-साथ रिटायर्ड कर्मचारी और काम से छूटने वाले अधिकारी भी मास्क बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। महामारी के हांगकांग पहुंचने से पहले यहां हर महीने 11 लाख मास्क तैयार किए जाते थे।

हॉन्गकॉन्ग के कैदी जेल में अपना समय काम करते हुए बिताते हैं, जिससे न केवल उनके आलस और तनाव में कमी आती है, बल्कि काम से मिले पैसे से उन्हें अपने पुनर्वास में मदद मिलती है। यहां 4000 से अधिक कैदी हर साल ट्रैफिक चिह्न, पुलिस की वर्दी, अस्पताल कपड़े और सरकारी दफ्तरों में दी जाने वाली चीजें तैयार करते हैं।

2018 में कैदियों द्वारा तैयार किए सामानों की कीमत 432 करोड़ रुपए आंकी गई थी। कैदी पूरी रात या अतिरिक्त शिफ्टों में यह काम स्वैच्छिक रूप से करते हैं। इसके लिए उन्हें ज्यादा मजदूरी दी जाती है। हालांकि दो साल की सजा पूरी कर पिछले ही महीने जेल से निकलीं यानीस कहती हैं कि उसे रोज की मजदूरी 4.30 डॉलर थी, जो हॉन्गकॉन्ग में तय न्यूनतम मजदूरी का आठवां हिस्सा थी।

हॉन्गकॉन्ग ह्यूमन राइट्स मॉनिटर के निर्देशक लॉ युक-काई कहते हैं कि समाज की अत्यावश्यक जरूरतों की पूर्ति के लिए इस तरह के सस्ते श्रम पर निर्भरता ठीक नहीं है। कैदी हमारी जरूरतों की पूर्ति के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं, तो उन्हें उनके काम का मामूली मेहनताना नहीं दिया जाना चाहिए।

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