दुनियाभर से खबरें और तस्वीरें आ रही हैं कि कोरोनावायरस के फैलते संक्रमण से बचने के प्रयासों के बीच वायु प्रदूषण में कमी आई है। लेकिन, इससे जुड़ा एक और तथ्य सामने आया है, जिसके मुताबिक जिन इलाकों में प्रदूषण ज्यादा था, वहां पर कोरोना से मौतें भी ज्यादा हुईं। जहां प्रदूषण कम मात्रा में था, वहां पर संक्रमण भी कम फैला और मौतों का आंकड़ा भी कम रहा। यह दावा अमेरिका की देशव्यापी स्टडी में किया गया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने स्टडी के दौरान अमेरिका की 3080 काउंटी का विश्लेषण किया।

यूनिवर्सिटी के टीएच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के मुताबिक, जिन इलाकों में प्रदूषित कणों (पीएम 2.5) का स्तर ज्यादा था, वहां मृत्यु दर भी ज्यादा रही। इस तरह की स्टडी देश में पहली बार हुई। शोधकर्ताओं ने सांख्यिकीय गणना के आधार पर यह माना है कि प्रदूषण कणों की संख्या ज्यादा होने का असर कोरोना और अन्य बीमारियों से होने वाली मौतों पर पड़ा है। स्टडी के अनुसार, अगर मैनहट्‌टन अपने औसत प्रदूषण कणों को पिछले 20 साल में एक माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर भी कम कर देता तो शायद हमें 248 मौतें कम देखने को मिलती। इस शोध से हेल्थ अफसरों को यह तय करने में मदद मिल सकती है कि मरीजों को वेंटिलेटर्स और रेस्पिरेटर्स जैसे संसाधन कैसे देने हैं।

हार्वर्ड डेटा साइंस इनिशिएटिव के डायरेक्टर और स्टडी के लेखक फ्रांसेस्का डोमिनिकी के मुताबिक, कई काउंटी में पीएम 2.5 का स्तर 1 क्यूबिक मीटर में 13 माइक्रोग्राम है। यह अमेरिकी औसत 8.4 से बहुत अधिक है। स्टडी के नतीजों से स्पष्ट होता है कि लंबी अवधि में प्रदूषण की मात्रा बढ़ना, कोरोना संबधी खतरे को भी बढ़ाएगा। उदाहरण के लिए कोई शख्स 15-20 साल तक ज्यादा प्रदूषण झेलता रहा है तो कम प्रदूषित जगह पर रहने वाले की तुलना में उसकी कोरोना से मौत की संभावना 15% ज्यादा रहेगी।

इटली में कोरोना से ज्यादा मौतों को भी प्रदूषण से जोड़कर देखा जा रहा है। स्विस एयर मॉनिटरिंग प्लेटफॉर्म आईक्यूएयर के मुताबिक, यूरोप के सबसे प्रदूषित सौ शहरों में से 24 शहर इटली के हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि ऐसे में वायरस संक्रमण और मृत्यु दर बढ़ने की वजह प्रदूषित हवा भी हो सकती है।

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