चीन से तनातनी बढ़ी तो यूपी के पीलीभीत में रहने वाले दर्शन सिंह के परिवार के वो जख्म फिर हरे हो गए जो सेना की नौकरी पूरी करके घर लौटने के बाद दर्शन सिंह ने अपने परिवार आपबीती सुनाई थीं। दिवंगत हो चुके सिख रेजीमेंट में हवलदार रहे दर्शन सिंह ने 1962 की जंग में वो कठिन दौर देखा था जो जिसकी कल्पना करने मात्र से रूह कांप जाए।
पीलीभीत में रिछौला के नजदीक सिरसा सरदाह गांव निवासी राजेंद्र सिंह अपनी मां दलवीर कौर और पूरे परिवार के साथ रहते हैं। इनके घर के आसपास ही बाघ की टेरीटरी है। दिवंगत हो चुके दर्शन सिंह 4 सिख रेजीमेंट में हवलदार थे। मूल रूप से पंजाब के अमृतसर अंतर्गत तरनतारन के निवासी दर्शन सिंह का पूरा परिवार अब तराई में बस चुका है। अपने फार्म पर दलवीर कौर ने बताया कि जंग में कई कई दिनों तक वो अपनी टुकड़ी के साथ लड़े थे। एक दफा तो ऐसा हुआ कि पूरी टुकड़ी इतनी परेशान हो गई थी कि पानी तक नहीं मिल रहा था और जंग छिड़ी हुई थी। वो बताते थे कि पानी तक नहीं मिलता था तो लघु शंका (पेशाब) को बोतलों में रख लेते थे। जब लड़ते लड़ते कोई ज्यादा ही बेहाल हो जाता था तो इसी का थोड़ा बहुत इस्तेमाल किया जाता था। ताकि सांसें चलतीं रहें। दलवीर बतातीं हैं कि अब वो इस दुनिया में जरूर नहीं हैं पर आज जो चीन और भारत के बीच तनातनी चल रही है उस पर हम सबका खून खौल उठ रहा है।
पहले बेटे का मुहं भी नहीं देख पाए थे दर्शन
दलवीर के पति दर्शन सिंह अपने पहले बेटे का मुहं तक नहीं देख सके थे। वो उस वक्त सरहद पर ही थे। यहां दलवीर ने उनके पहले बड़े पुत्र का जन्म दिया था। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। उनका पहले बेटा असमय ही मौत के मुंह में चला गया। अब दलवीर अपने एकमात्र पुत्र राजेंद्र और तीन बेटियों के भरे पूरे परिवार के साथ खुश हैं। पर जो दुख उनके पति ने चीन के साथ हुई जंग में उठाए थे, उसका गम उनके चेहरे पर झलक रहा था।
सरकार सख्त निर्णय ले अब
दिवंगत हो चुके दर्शन सिंह संधू के पुत्र राजेंद्र सिंह संधू बताते हैं कि हमें फख्र है कि मेरे पापा ने चीन जैसे चालाक शत्रु के खिलाफ अपनी जाबांजी दिखाई थी। राजेंद्र सिंह ने बताया कि पापा जी को बाद में 1965 में रक्षा मैडल से सम्मानित किया गया था। अब भारतीय जवानों के साथ जो बर्ताव किया गया है। हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार कड़ा निर्णय लेकर सेना के जरिए मुहंतोड़ जवाब दे।