कोरोनावायरस से पूरी दुनिया में अब तक 1.20 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी हैं। 20 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। इस महामारी के संक्रमण से बचने के लिए सीडीसी (सेंटर फॉर डीजीज कंट्रोल) और डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) पहले दिन से ही लोगों को हर दो घंटे में हाथ धुलने और बेवजह नाक, आंख, कान को छूने से मना कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि लोग अभी भी आदतन हर घंटे में 23 बार अपने चेहरे के विभिन्न अंगों (आंख, कान, नाक, गाल, माथा, ठोढ़ी) को छू रहे हैं। इस बात का खुलासा अमेरिका की डॉ. नैंसी सी. एल्डर, डॉ. विलियम पी. सॉयर और ऑस्ट्रेलिया की डॉ. मैक्लाव्स ने अपने अध्ययन के आधार पर किया है। तीनों ही डॉक्टर फेस टचिंग पर स्टडी कर रही हैं। इन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स से विशेष बातचीत में बताया कि कोरोना से बचना है तो लोगों को बेवजह चेहरे छूने की आदत को छोड़ना होगा।

पोर्टलैंड स्थित ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी में फेमिली मेडिसन की प्रोफेसर डॉ. नैन्सी सी एल्डर कहती हैं कि आंख, कान और नाक को छूना लोगों की गंदी आदत है। आंखों को मलना, नाक खुजाना, गाल और ठोढ़ी पर उंगलियां फेरना यह सामान्य है। डॉ. नैंसी ने अपने क्लीनिक स्टाफ के 79 लोगों को टॉस्क देकर एक कमरे में दो घंटे के लिए छोड़ दिया। निगरानी में यह पाया गया कि सभी ने 1 घंटे के भीतर ही अपने चेहरे के विभिन्न अंगों को 19 बार टच किया। नैंसी के अनुसार, कोरोना वायरस से हमारे श्वसन प्रणाली (रेस्पिरेट्री सिस्टम) में आंख, कान और नाक के माध्यम से ही प्रवेश करता है, इसलिए लोगों को चेहरे छूने की आदत को त्यागना ही होगा।

ओहियो के शेरोनविले में फेमिली फिजीशियन और Henrythehand.com के संस्थापक डॉ. विलियम पी. सायर लोगों को हाथ सैनेटाइज करने और बेवजह चेहरे के ‘टी जोन’ (माथा, आंख, नाक और ठोढ़ी) न छूने के प्रति जागरूक कार्यक्रम चलाते हैं। उनके कार्यक्रम में बड़े से लेकर बच्चे शामिल होते हैं। वे कहते हैं, ‘हर कोई अपने चेहरे को छूता है और इसे छोड़ना एक कठिन आदत है। मैं ऑब्जर्व करता हूं कि लोग इस कोरोना जैसी महामारी में भी पब्लिक प्लेस जैसे लिफ्ट, बस, ट्रेन, मेट्रो, कैब आदि जगहों पर भी अपने चेहरे के टी जोन को बेवजह छूते रहते हैं। यदि आप अपने चेहरे के श्लेष्म झिल्ली (म्यूकस मेम्ब्रेन) को कभी नहीं छूते हैं, तो आपकी सांस के संक्रमण या फिर इससे संबंधित बीमारी से ग्रसित होने की संभावना कम रहती है।’

सिडनी स्थित साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में महामारी और संक्रमण विषय की प्रोफेसर और 2015 में ‘फेस टचिंग’ नामक विषय पर स्टडी रिपोर्ट तैयार करने वाली डॉ. मैरी-लुईस मैक्लाव्स कहती हैं कि ‘मेरी रिपोर्ट कोरोना के इस दौर में प्रासंगिक हो गई है। मैंने यह रिपोर्ट अपने 26 स्टूडेंट्स के आधार पर बनाई थी, जिसमें हर एक घंटे के दौरान लोग औसतन 23 बार अपने चेहरे को स्पर्श करते हैं। मैं कॉन्फ्रेंस के सिलसिले में दुनिया के कई हिस्सों में जाती रहती हूं। अक्सर देखती हूं कि लोग एक मिनट के भीतर ही दर्जन बार अपनी आंख, नाक, कान और माथे को बेपरवाह तरीके से स्पर्श कर लेते हैं। आंखें रगड़ना, नाक खुजलाना, ठोढ़ी के बल टेक लगाना यह बहुत सामान्य आदत है, लेकिन इसे कोरोना जैसी महामारी के चलते छोड़ना ही होगा।’

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