कानपुर में बढ़ते प्रदूषण से लोगों की याददाश्त कमजोर होने लगी है। इनमें अवसाद के लक्षण होने के कारण मानसिक रूप से असर पड़ रहा है। मनोविज्ञान सेंटरों पर पहुंच रहे ऐसे लोगों के बारे में माना जा रहा है कि बदलते मौसम के असर के साथ इन पर प्रदूषण का भी असर शामिल है। सेंटर पर इनकी सामान्य काउंसिलिंग कर ऐसे उपाय बताए जा रहे हैं जिससे वे उबर सकें।
साइकोलॉजिकल टेस्टिंग एण्ड काउंसिलिंग सेंटर (पीटीसीसी) के निदेशक और पूर्व मंडलीय मनोवैज्ञानिक डॉ. एलके सिंह के मुताबिक का कहना है कि वैसे भी नवंबर का महीना सबसे ज्यादा लोगों में डिप्रेशन लाता है। इसके कई वैज्ञानिक कारण हैं। पिछले कुछ वर्षों से इस महीने में प्रदूषण भी बढ़ने लगा है। इस कारण स्थिति बदलती जा रही है। रोज तीन-चार मामले अवसाद के आ रहे हैं जिनकी आंखों में जलन, गले में खराश जैसे लक्षण हैं। ऐसा प्रदूषण के कारण हो सकता है।
क्यों होता है डिप्रेशन
डॉ. सिंह का कहना है कि नवंबर में तापमान गिरता है जिसके चलते शरीर तत्काल अपने को बदल नहीं पाता है। ऐसे में लोग अवसाद में जाने लगते हैं। प्रदूषण होने से दिमाग के हाइपोथैलेमस तक ऑक्सीजन उतनी नहीं पहुंच पाती है जितनी होनी चाहिए। इस कारण डिप्रेशन और बढ़ जाता है।
कैसे हो सकता है इलाज
वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि ऐसे लोगों की काउंसिलिंग के साथ उन्हें योगा की सलाह दी जाती है। इससे शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है। यदि कोई योग न करे तो वह वर्जिश यानी एक्सरसाइज कर सकता है। इसके अतिरिक्त इन्हें पानी पीने की भी सलाह दी जाती है। ऐसे लोग मौसम बदलते ही पानी कम पीने लगते हैं जिसका भी असर पड़ने लगता है। प्रदूषण से भी बचाव करना चाहिए।