किसान आंदोलन : यूपी गेट पर महापंचायत आज, किसानों के 17 संगठन शामिल होंगे

भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में यूपी गेट बॉर्डर पर गुरुवार सुबह 11 बजे महापंचायत होगी। इसमें देश के अलग-अलग राज्यों के 17 संगठन के किसान शामिल होंगे। केरल, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिले से किसान यूपी गेट पर पहुंच रहे हैं।

बुधवार शाम तक किसानों के पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। गुरुवार सुबह महापंचायत में अधिक संख्या में किसानों के पहुंचने की बात कही जा रही है। बुधवार को पूरे दिन धरना स्थल पर समूहों में किसान महापंचायत को लेकर चर्चा करते नजर आए। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि महापंचायत में किसानों की समस्याओं पर चर्चा की जाएगी। अगर सरकार मांगों को नहीं मानती है तो आगे की रणनीति की तैयारी की जाएगी।

टिकैत सिंघु बॉर्डर के लिए रवाना

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत बुधवार दोपहर करीब 1:30 बजे सिंघु बॉर्डर के लिए कार से रवाना हो गए। इस दौरान उन्होंने कहा कि वह सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसानों की समस्यों पर बातचीत के लिए जा रहे हैं। वहां के किसानों से पूरे मामले को लेकर वार्ता करेंगे।

बैरिकेड भी तोड़ा

रोजाना की तरफ बुधवार सुबह करीब 8:30 बजे किसानों का एक समूह बॉर्डर पर बैरिकेड पर पहुंचा और हंगामा करते हुए बैरिकेड को तोड़ दिया। इस दौरान बैरिकेड पर मौजूद सुरक्षा बलों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। किसान वापस धरना स्थल पर आकर बैठ गए। पूरे दिन रुक-रुक कर किसान बैरिकेड के पास पहुंचकर नारेबाजी करते रहे। वहीं, धरना स्थल पर बैठे किसानों के लिए कई संगठनों की ओर से खाने पीने की व्यवस्था की गई है। लंगर चल रहा था। वहीं कई संगठन के लोग गाड़ियों से भी खाना पहुंचा रहे थे।

महिलाओं व बच्चों से बातचीत

दादा जी पिछले चार दिनों से धरना स्थल पर हैं, आज मैं भी फूफा जी के साथ धरने में शामिल होने के लिए आया हूं। सरकार को किसानों की बात सुननी चाहिए। – यश, उम्र चार साल

परिवार के साथ किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए आई हूं। किसानों की मांगे पूरी होनी चाहिए। सभी किसान एक साथ मिलकर अपनी मांग कर रहे हैं। – हनी, उम्र छह साल

नए कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन में शामिल हूं। जब तक सरकार यह किसान विरोधी कानून वापस नहीं लेती तब तक आंदोलन करते रहेंगे। – बबली सिंह, हापुड़

सरकार ने किसानों के मर्जी के बिना यह कानून बनाया है। किसी भी किसान संगठन की इस पर सहमति नहीं है। फिर सरकार इस कानून को रद्द क्यों नहीं करती है। – नीलम त्यागी, हापुड़

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