कोरोना संकट और लॉकडाउन की बीच देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ के पैकेज का ऐलान किया है, जिसे लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अलग-अलग सेक्टर के लिए घोषणाएं कर रही हैं. वित्त मंत्री गुरुवार को कृषि सेक्टर को राहत देने के लिए डिटेल रखेंगी, लेकिन इससे पहले ही किसान संगठनों ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए फसल के नुकसान की भरपाई से लेकर कर्ज माफ करने जैसी कई डिमांड रखी हैं. ऐसे में देखना होगा कि किसानों की उम्मीदों पर मोदी सरकार कितनी खरी उतरती है?

भारतीय किसान यूनियन के महासचिव धर्मेंद्र मलिक ने कहा कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन में सबसे बड़ी मार इस देश के किसानों पर पड़ी है. किसानों की सारी फसलें चौपट हो गई हैं, जिसमें फल से लेकर सब्जियां और अनाज तक शामिल हैं. किसान को उसकी फसल का उचित रेट नहीं मिल रहा है, ऐसे में पहले सरकार किसानों की फसल के नुकसान की भरपाई करे और उचित रेट की व्यवस्था करे.

धर्मेंद्र मलिक ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि कृषि सेक्टर के तहत फसलों पर लिए गए किसानों के मौजूदा क्रॉप लोन को माफ किया जाए, क्योंकि इस साल तो किसानों की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है. साथ ही किसान को अगली फसल के लिए खाद, बीज, सहित तमाम संसाधनों के लिए नगदी मुहैया कराई जाए. उन्होंने कहा कि जिस तरह फसल का प्रोडक्शन गिरा है और किसानों का भारी नुकसान हुआ है. उसे देखते हुए किसानों के जितने भी कर्ज फसल और मशीनरी पर लिए गए हों, उन्हें एक साल के लिए आगे बढ़ा दिया जाना चाहिए और उस पर लगने वाले ब्याज को माफ किया जाना चाहिए.

किसान यूनियन के महासचिव कहते हैं कि देश की आत्मनिर्भरता के लिए पहले कृषि सेक्टर की आत्मनिर्भरता जरूरी है. लेकिन सरकार सारी मदद कॉरपोरेट की करती है. किसान बिना सरकार के मदद के कैसे आत्मनिर्भर होगा, उसे खाद और बीज पर मोनसेंटो जैसी विदेशी और कॉरपोरेट कंपनी पर निर्भर कर दिया गया है. सरकार जब तक किसान को अपना बीज, अपनी खाद, अपनी दवाई और अपने भोजन के सिद्धांत पर काम नहीं करेगी तब तक आत्मनिर्भरता नहीं आएगी. ऐसे में सरकार को स्थानीय बीज से लेकर खाद तक पर काम करना होगा. साथ ही उन्होंने किसान सम्मान निधि की राशि को साल में 6 हजार से बढ़ाकर 24 हजार रुपये जाने की मांग की है.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक सरदार वीएम सिंह कहते हैं कोरोना संकट के बीच किसानों पर दोहरी मार पड़ी है. एक तरफ बारिश और ओलावृष्टि से किसान की फसल बर्बाद हुई तो दूसरी तरफ लॉकडाउन की वजह से किसानों को फल एवं सब्जियों के साथ ही दूध और अन्य फसलों- गेहूं, चना, सरसों आदि को औने-पौने दाम पर बेचना पड़ रहा है. ऐसे में सरकार तय करे कि किसानों के नुकसान की भरपाई बीमा कंपनियों से कराएगी या फिर वो खुद करेगी.

उन्होंने कहा कि गांव की 80 फीसदी अर्थव्यवस्था दूध के द्वारा होती है. लॉकडाउन के बाद किसानों की रोजी-रोटी का साधन खत्म हो गया है. देश में हर रोज दूध किसानों को 200 करोड़ रुपये के करीब नुकसान हो रहा है. ऐसे में दूध किसानों को मुआवजे के साथ सरकार उनकी आर्थिक मदद करे. वीएम सिंह कहते हैं कि ऐसे ही गन्ना किसानों की हालत है. यूपी की ही अगर बात करें तो साढ़े 12 हजार करोड़ रुपये गन्ना किसानों का मिल मालिकों पर बकाया है. ऐसे में सरकार अपने पास से गन्ना किसानों के बकाया का भुगतान खुद कर दे ताकि किसानों के घर का खाना-पीना चालू हो सके. चीनी मिल मालिकों से इस पैसे को सरकार वसूल कर ले.

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