कोरोना के चलते दुनिया के ज्यादातर देशों में लॉकडाउन है। एहतियात के तौर पर लोग भी अपने घरों से बाहर निकलने से बच रहे हैं। ऐसे में बहुत से लोग ऐसे जो अकेले रहते हैं। इन लोगों के लिए यह दौर काफी मुश्किल साबित हो रहा है। एक्सपर्टस बताते हैं कि इससे अकेले रहने वाले लोगों के डिप्रेशन में जाने का खतरा भी बढ़ रहा है।

16 साल से अकेली रह रहीं आफिया ओफोरी मेन्सा पिछले साल अगस्त में न्यू जर्सी शिफ्ट हुईं थीं। आफिया कहती हैं कि वे लोगों से दोबारा मिलकर अपनी सोशल लाइफ फिर से शुरू कर रही थीं। ऐसे में कोरोनावायरस के कारण वे फिर एक बार आइसोलेशन के शिकंजे में हैं। यह समय बहुत ही खतरनाक है, हमें यह पता नहीं होता है कि दोबारा किसी इंसान से कब मिल पाएंगे। मुझे लगता है कि मैं गायब हो रही हूं।

जनवरी 2020 में सिग्ना ने 18 साल और इससे ऊपर के 10 हजार लोगों पर एक सर्वे किया। इस सर्वे में 61 प्रतिशत लोगों ने खुद को अकेला बताया। सिग्ना के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर डॉग नेमसेक के मुताबिक ऐसे में कोरोनावायरस के कारण घर में कैद लोगों के बीच अकेलेपन का एहसास और बढ़ गया है। हम सामाजिक तौर पर दूर हो गए हैं। हम दोस्तों से पड़ोसियों से नहीं मिल सकते। यह सब इस बात को प्रभावित करता है कि हम सामाजिक जुड़ाव के बारे में क्या सोचते हैं।

रिघम यंग यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी और न्यूरोसाइंस की प्रोफेसर जूलियन होल्ट लंस्टैड के मुताबिक हम सामाजिक इंसान हैं और जब हम दूसरे लोगों से दूर हो जाते हैं तो शरीर प्रतिक्रिया देता है। ऐसे मुश्किल हालात में हम दूर होकर भी सामाजिक तौर पर जुड़े रहने की कोशिश कर रहे हैं। डॉक्टर होल्ट के मुताबिक अकेलेपन के प्रभाव काफी गंभीर हो सकते हैं। एक स्टडी के मुताबिक अकेलेपन के कारण जल्दी मौत की आशंका 26 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। डॉक्टर के अनुसार अकेले रहने अकेलेपन के चलते मोटापे, वायु प्रदुषण से भी मौत की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

सिग्ना की स्टडी के मुताबिक 18 से 22 साल की उम्र के 79 प्रतिशत लोग खुद को अकेला समझते हैं। इस इस आयु वर्ग में ज्यादा सोशल मीडिया यूज करने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है। साइकोलॉजिस्ट और द विलेज इफेक्ट किताब की लेखक सुसन पिंकर के मुताबिक अकेलापन आपकी इच्छा के खिलाफ अकेले रहने की एक भावना है। आप लोगों के बीच रहकर भी अकेले रह सकते हैं। यह अलग किए जाने की भी भावना है।

स्टॉकटन यूनिवर्सिटी में सोशल वर्क और जेरेंटोलॉजी की प्रोफेसर लीसा कॉक्स के अनुसार, सोशल कॉन्टेक्ट और सपोर्ट नहीं पाने वाले लोगों में डिप्रेशन का अधिक खतरा होता है। कॉक्स के मुताबिक जब आप अकेले होते हैं तो नई चीजों के लिए एनर्जी जुटाना कठिन हो जाता है। डॉक्टर पिंकर के वीडियो चैट की सलाह देती हैं। यह परिवार या उन दोस्तों से बात करने का एक अच्छा मौका है, जिनसे आपने काफी समय से बात नहीं की है। दोनों डॉक्टर्स हाउसपार्टी और नेटफ्लिक्स जैसी एप्स के उपयोग की सलाह भी देती हैं।

नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन की 2020 में आई रिपोर्ट के मुताबिक 60 या इससे ज्यादा उम्र के करीब आधे लोग खुद को अकेला महसूस करते हैं। एएआरपी फाउंडेशन की प्रेसिडेंट लीसा मार्स रायेर्सन बताती हैं कि कोरोनावायरस फैलने के बाद अकेले महसूस करने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है। वे सलाह देती हैं कि अधेड़ उम्र के लोगों को अपपने करीबी दोस्तों और पड़ोसियों की एक लिस्ट तैयार करनी चाहिए। बाद में इस लिस्ट में विस्तार करते हुए अपने पुराने सहकर्मियों को भी शामिल करें। इसके अलावा वे लीसा को ऐसे लोगों को फोन करने की सलाह भी देती हैं, जो अकेलेपन का शिकार हैं।

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