उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को प्रवासी मजदूरों के मामले पर सुनवाई की। अदालत ने कहा कि देशभर में प्रवासी मजदूरों की गतिविधियों की निगरानी करना या उन्हें रोकना असंभव है। अदालत ने कहा कि सरकार को इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए।

केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि देशभर में प्रवासी कामगारों को उनके गंतव्य तक के लिए परिवहन उपलब्ध कराए जा रहे हैं लेकिन उन्हें पैदल चलने के बजाय अपनी बारी का इंतजार करना होगा।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने सभी जिलाधिकारियों से फंसे हुए प्रवासी कामगारों की पहचान करने, उनके लिए मुफ्त परिवहन सुनिश्चित करने से पहले आश्रय, भोजन उपलब्ध कराने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग वाले एक आवेदन पर विचार करने से इनकार कर दिया।

यह आवेदन हाल ही में औरंगाबाद में हुई घटना को लेकर दायर किया गया था। जिसमें 16 मजदूरों की मालगाड़ी के नीचे आने से मौत हो गई थी। प्रवासियों की याचिका पर सुनवाई करने वाली पीठ में न्यायमूर्ति एसके कौल और बीआर गवई भी शामिल थे।

पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या इन प्रवासी श्रमिकों को सड़कों पर चलने से रोकने का कोई तरीका है। जिसपर मेहता ने कहा कि राज्य प्रवासी श्रमिकों को अंतर-राज्यीय परिवहन प्रदान कर रहे हैं लेकिन अगर लोग परिवहन का इंतजार करने की बजाय पैदल चलना शुरू करते हैं तो कुछ भी नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि अधिकारी केवल प्रवासियों से पैदल न चलने का अनुरोध कर सकते हैं क्योंकि उन्हें रोकने के लिए किसी भी तरह के बल का उपयोग करना प्रतिकूल होगा। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई करने वाली पीठ को मेहता ने कहा कि राज्य सरकारों के बीच समझौते के अधीन हर किसी को अपने गृह राज्य जाने का मौका मिलेगा।

अदालत में यह याचिका वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने दायर की थी। इसमें उन्होंने मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की हालिया घटनाओं का जिक्र किया था जहां राजमार्गों पर हुई दुर्घटनाओं में प्रवासी श्रमिक मारे गए थे।

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