लॉकडाउन ने एक ओर जहां दुनियाभर में कहर मचा रखा है वहीं दूसरी ओर कई ऐसी चीजें भी दिखाई हैं जिसकी लोग कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे। राजधानी दिल्ली में बह रही यमुना का पानी भी इस लॉकडाउन के दौरान ही साफ सुथरा और नीला नजर आ रहा है जिसको लेकर अब तक करोड़ों रूपये खर्च किए गए मगर सकारात्मक परिणाम कभी भी देखने को नहीं मिला।

यमुना को उसके पुराने रूप में लौटाने और साफ बनाए रखने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार ने कई कदम उठाए मगर किसी का परिणाम सकारात्मक नहीं निकला, अब इन 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान यमुना ने अपने आप को साफ कर लिया है। जिस यमुना को करोड़ों रुपये का बजट खर्च करके भी साफ नहीं किया जा सका, ऐसा कहा जा रहा है कि यमुना के जिस प्रदूषण को करोड़ों रूपये खर्च करके भी साफ नहीं किया जा सका उसे मात्र 21 दिनों के लॉकडाउन और महज औद्योगिक प्रदूषण पर अंकुश से नजारा एकदम से बदला नजर आ रहा है।

यमुना बचाओ आंदोलन से जुड़े एनएन मिश्रा कहते हैं कि साल 1990 से लेकर अब तक ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया, अब इन 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान ऐसा सीन देखने को मिला है। इसमें थोड़ा सा योगदान बरसात का भी है मगर बाकी औद्योगिक कचरों के न आने से ऐसा नजारा दिख रहा है। ये सिर्फ लॉकडाउन से ही संभव हो पाया है। यमुना के इस बदलाव को विशेषज्ञों के स्तर पर भी गंभीरता से लिया जा रहा है।

इसीलिए इस पर एक अध्ययन भी शुरू हो गया है। इसी आधार पर यमुना के पुनरुद्धार की भावी योजनाएं तैयार होंगी। यमुना की स्थिति और जल में आए इस बदलाव ने आमजन का ही नहीं बल्कि विशेषज्ञों का भी ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। लॉकडाउन ने दिल्ली की मृतप्राय यमुना को नया जीवन दे दिया है।

यमुना निगरानी समिति की ओर से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को इस पर अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया है ताकि यह बदलाव भविष्य में भी यमुना में सुधार का आधार बन सके। यमुना से जुड़ी योजनाएं भी इसी रिपोर्ट को आधार बनाकर तैयार की जाएंगी। इसी निर्देश के मद्देनजर सीपीसीबी की एक टीम ने विभिन्न स्थानों से राजधानी में यमुना के पानी के नमूने भी उठाए हैं। संभावना जताई जा रही है कि यमुना के इस बदलाव पर प्राथमिक रिपोर्ट जारी कर दी जाएगी।

दिल्ली में पल्ला से बदरपुर तक कुल 54 किलोमीटर तक यमुना बहती है, लेकिन वजीराबाद से ओखला के बीच 22 किलोमीटर के क्षेत्र में यह सबसे ज्यादा प्रदूषित है। यमुनोत्री से इलाहाबाद के बीच 1,370 किलोमीटर लंबी यमुना का यह हिस्सा कहने को तो थोड़ा सा है, लेकिन 76 फीसद प्रदूषण इसी हिस्से में दिखता है। वजह, पानीपत और दिल्ली की औद्योगिक इकाइयों का कचरा और रसायन युक्त पानी नालों के जरिये सीधे यमुना में गिरता है। रिपोर्ट के मुताबिक यमुना में 748 एमजीडी गिरता है इसमें से मात्र 90 एमजीडी पानी का शोधन हो रहा है और 290 एमजीडी यमुना में ऐसे ही गिर रहा है। पिछले करीब दो सप्ताह से चल रहे देशव्यापी लॉकडाउन ने दिल्ली और हरियाणा की तमाम औद्योगिक इकाइयों पर भी तालाबंदी कर रखी है। नतीजा, यमुना में फिलहाल औद्योगिक कचरा और रसायन युक्त पानी बिल्कुल नहीं जा रहा है।

नदियों की सफाई को लेकर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि देश में लॉकडाउन के बाद से गंगा नदी की के पानी की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। पर्यावरणविद विक्रांत टोंगड़ का कहना है कि औद्योगिक क्षेत्रों में खासा सुधार देखा जा रहा है, जहां बड़े पैमाने पर कचरा नदीं में डाला जाता था। उन्होंने कहा कि गंगा में कानपुर के आसपास पानी बेहद साफ हो गया है।

गंगा की सहायक नदियों हिंडन और यमुना का पानी भी पहले से साफ हुआ है। हालांकि घरेलू सीवरेज की गंदगी अभी भी नदी में ही जा रही है। इसके बावजूद औद्योगिक कचरा गिरना एकदम बंद ही हो गया है। इसीलिए पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के चलते आने वाले कुछ दिनों में गंगा के जल में और सुधार की पूरी उम्मीद है।

पर्यावरणविद् और साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रिवर, पीपुल (एसएएनडीआरपी) के एसोसिएट कोआर्डिनेटर भीम सिंह रावत ने बताया कि आर्गेनिक प्रदूषण अभी भी नदीं के पानी में घुल कर खत्म हो जाता है। लेकिन औद्योगिक इकाइयों से होने वाला रासायनिक कचरा घातक किस्म का प्रदूषण है जो नदी की खुद को साफ रखने की क्षमता को खत्म कर देता है। लॉकडाउन के दौरान नदी की खुद को साफ रखने की क्षमता में सुधार के कारण ही जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। ध्यान रहे कि भारत में 25 मार्च से तीन सप्ताह का पूर्ण लॉकडाउन लागू है।

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