हरियाणा शिक्षा बोर्ड की 10वीं की परीक्षा में रोहतक के एक मजदूर की बेटी ने अभावों के बावजूद मेरिट में स्‍थान हासिल की है। पूजा नामक की इस छात्रा ने पार्क की स्ट्रीट लाइट की रोशनी में पढ़ाई की और मेरिट में जगह बनाकर एक मिसाल कायम की है। पूजा थोड़ी मायूस है क्योंकि उसको उम्मीद से छह फीसद अंक कम आए। लेकिन, इसकी परवाह नहीं है। वह कहती है कि आगे और ज्यादा मेहनत करेगी। उसने कहा कि भरोसा है कि वह 12वीं की परीक्षा में इसकी भरपाई कर सकेगी। परीक्षा परिणाम से उसके माता-पिता बेहद खुश हैं। उनका कहना है कि बेटी ने गरीबी के बावजूद गौरव का अहसास दिया है।

निशुल्क गांधी स्कूल की छात्रा ने हासिल किए 84.4 फीसद अंक

मूलरूप से मध्यप्रदेश के जिला टीकमगढ़ के गांव दररेठा की रहने वाली पूजा सेक्टर-3-4 के एक्सटेंशन एरिया में झोपड़ी में परिवार के साथ रहती है। मां मिंकू घरों में काम करती है व पिता मजदूरी करते हैं। पूजा को बचपन से ही पढ़ाई की लगन रही है। पार्क में श्रमिकों के बच्चों को गांधी स्कूल के संचालक नरेश कुमार स्ट्रीट लाइट की रोशनी में पढ़ा रहे थे। वह भी वहां जाकर पढ़ती थी।

झोपड़ी में रहता है परिवार, पिता श्रमिक और मां करती है घरों में काम

उसने मॉडल टाउन स्थित शहीद कैप्टन दीपक शर्मा राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में दाखिल  लिया था। स्कूल में आने-जाने के लिए साइकिल थी, जो किसी के सहयोग से मिली थी। दिन में मां-बाप के कार्य में हाथ भी बांटती और रात को स्ट्रीट लाइट की रोशनी में पढ़ती थी।

 

मूलरूप से मध्यप्रदेश के जिला टीकमगढ़ के गांव दररेठा की रहने वाली है पूजा

गांधी स्कूल में खुद भी पढ़ती और छोटे बच्चों को पढ़ाती भी रहीं। पूजा का कहना है कि दसवीं की परीक्षा दी, उसे उम्मीद थी कि 90 फीसद से ज्यादा अंक आएंगे, लेकिन 84.4 फीसद अंक आए हैं। मेरिट में तो स्थान बनाने में सफल रही, लेकिन जितने चाहे थे, उतने नहीं मिले।

बोली- सफलता के लिए संसाधन से ज्‍यादा जरूरी है मेहनत

पूजा का कहना है कि सफलता में संसाधन बहुत मायने रखते हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है मेहनत। मेहनत के दम पर भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। उनके लिए न तो घर में कोई सुविधा है और न प्राइवेट स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने के लिए फीस का इंतजाम। परीक्षा में बेहतर अंक हासिल करने के लिए उसके पास एक ही चीज थी, वो है मेहनत। चार बहनें हैं, जिनमें बड़ी बहन वर्षा 12वीं में पढ़ रही है, उसके साथ ही मुकाबला भी रहता है।

टीचर बनना चाहती है पूजा

पूजा ने बताया कि वह भविष्‍य में टीचर बनाना चाहती है। श्रमिकों के बच्चे पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं। उसे भी शुरुआत में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। जहां बचपन में स्ट्रीट लाइट की रोशनी में पढ़ती थी, वहां से भी भगा दिया गया था। लेकिन, गांधी स्कूल के संचालक नरेश कुमार ने हिम्मत दी और अपना मिशन जारी रखा। सामाजिक संगठनों के सहयोग से स्कूल चल रहा है। खासकर श्रमिकों के बच्चों के पढऩे के सपने होते हैं, लेकिन पूरे नहीं हो पाते। इसलिए वह टीचर बनकर ऐसे बच्चों के सपनों को पूरा करता चाहती है।

पूजा ने बताया कि लॉकडाउन में ऑनलाइन क्लास शुरू हुई तो उनके पास स्मार्ट फोन नहीं था। पीजीआइएमएएस के वरिष्ठ चिकित्सक डा. प्रवीण मल्होत्रा ने स्मार्ट फोन भेज दिया, जिससे चारों बहनों की ऑनलाइन क्लास लगाने की समस्या का समाधान हो गया।

 

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