उत्तराखंड में पूल सैंपलिंग से कोरोना की जांच में दोगुना समय लग रहा है। एक पूल के पॉजिटिव आने पर इसके सभी सैंपलों की दोबारा अलग-अलग जांच करनी पड़ रही है, जिससे राज्य में एक सैंपल की ही जांच में आठ की जगह 16 घंटे तक लग रहे हैं।

सरकार ने सैंपल जांच की रफ्तार बढ़ाने के लिए राज्य में पूल टेस्टिंग का निर्णय लिया था। अब पूल सैंपलिंग में अधिक वक्त को देखते हुए राज्य की कई लैबों ने सैंपलों के छोटे पूल बनाने शुरू कर दिए हैं।

एक पूल में 25 तक सैंपल शामिल हो सकते हैं, मगर कई पूल के कोरोना पॉजिटिव निकलने के बाद लैब अब पांच से सात सैंपलों को ही पूल में शामिल कर रही हैं।

दूसरी ओर, कोविड-19 कंट्रोल रूम के चीफ ऑपरेशन ऑफिसर अभिषेक त्रिपाठी स्वीकार करते हैं कि पूल के पॉजिटिव आने पर सैंपल जांच में अधिक समय लगता है। लेकिन, यह जानना जरूरी है कि कौन-सा सैंपल पॉजिटिव है।

इसलिए बिगड़ा गणित 
प्रवासियों की वापसी से पहले राज्य में संक्रमण नहीं के बराबर था। ऐसे में कई पूल नेगेटिव आ रहे थे। इसका यह मतलब है कि पूल में शामिल सभी व्यक्तियों के सैंपल नेगेटिव हैं।

उनमें कोरोना नहीं है। यदि पूल पॉजिटिव आ गया तो पूल में शामिल सैंपलों की जांच अलग से करनी पड़ती है। महाराष्ट्र समेत विभिन्न राज्यों से लौट रहे कई लोगों में कोरोना संक्रमण मिला है, ऐसे में उनके पूल पॉजिटिव आ रहे हैं और इस वजह से हर पूल को दोबारा जांचना पड़ रहा है।

अलग-अलग सैंपलों की बजाय पूल सैंपलिंग में अधिक समय लग रहा है। इसकी वजह यह है कि पूल के पॉजिटिव आने के बाद सैंपलों के अलग-अलग टेस्ट करने पड़ते हैं। इस कारण दोगुना समय लग जाता है।
डॉ. आशुतोष सयाना, प्राचार्य दून मेडिकल कॉलेज 

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