बेंगलुरू। राजस्थान कांग्रेस में विद्रोही तेवर अख्तियार करने वाले पूर्व डिप्टी सीएम और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के अध्य़क्ष सचिन पायलट ने घर वापसी के संकेत दे दिए हैं। अब साफ हो गया है कि सचिन पायलट की कांग्रेस से इतर राजनीतिक भविष्य नहीं है। हालांकि इसके संकेत उन्होंने शुरूआत में ही दे दिए थे, लेकिन जो तेवर उन्होंने तब अख्तियार किए थे, उसने लोगों में भ्रम जरूर पैदा कर दिया था। सचिन पायलट आखिरी नहीं, जानिए कांग्रेस के गांधी परिवार तक सिमटने की असली कहानी? राजस्थान में जारी सियासी संकट का पटाक्षेप हुआ रविवार को राजस्थान में जारी संकट का पटाक्षेप तब हुआ जब सचिन पायलट के कांग्रेस आलाकमान से मिलने की खबर तैरने लगी। सचिन पायलट ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ-साथ पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकात की और 34 दिनों से जारी राजस्थान में जारी सियासी संकट का समाधान हो गया। सचिन पायलट ने बागी तेवर छोड़कर कांग्रेसी में अपनी निष्ठा दिखाते हुए हथियार डाल दिए। हथियार डालना इसलिए कहना जरूरी है कि सचिन खुद कह चुके हैं कि उन्होंने ने हथियार डालने की कोई शर्त नहीं रखी है।
कांग्रेस से इतर सचिन पायलट राजनीतिक वजूद की कल्पना नहीं पाए सीधा सा अर्थ है कि सचिन पायलट कांग्रेस से इतर अपने राजनीतिक वजूद की कल्पना नहीं पाए और करीब 34 दिनों के मंथन में एक बात उनके घर कर गई कि अगर उन्होंने हथियार नहीं डाले तो उनका राजनीतिक करियर बर्बाद हो जाएगा, क्योंकि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के हाथों अपनी सरकार गंवाने के बाद छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीते हुए आक्रामकता दिखाते हुए सचिन पायलट को राजस्थान की राजनीति से दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकने में देर नहीं लगाई थी। उसी दिन से सचिन पायलट के तेवर नरम पड़ गए थे। सचिन पायलट के राजस्थान कांग्रेस में वापसी अब महज औपचारिकता चूंकि अब सचिन पायलट के राजस्थान कांग्रेस में वापसी को अब महज औपचारिकता रह गई है इसलिेए राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पर छाया राजनीतिक और विधायी संकट भी काफूर हो चुका है। राजस्थान में अशोक गहलोत के वर्चस्व को स्वीकार करते हुए पायलट ने हथियार तो डाल दिए हैं, लेकिन राजस्थान में गहलोत के हाथों खराब हुई अपनी छवि को चमकाने के लिए उन्हें पार्टी आलाकमान क्या जिम्मेदारी सौंपती है, यह देखने वाली बात होगी, क्योंकि डिप्टी सीएम पद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद शायद ही पायलट की छवि पर लगे धब्बे को छुड़़ाने में कारगर नहीं होंगे।