राजधानी के अस्पतालों में दिल्लीवालों को ही इलाज मिलेगा। सरकार ने इस फैसले के साथ कुछ दस्तावेजों की सूची तैयार की है, जिसके आधार पर आपको दिल्लीवाला मानकर इलाज किया जाएगा। इसमें आधार कार्ड, पासपोर्ट, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड, बैंक पासबुक समेत लगभग वह सभी दस्तावेज शामिल हैं, जो कि बतौर एड्रेस प्रूफ या मतदान के समय मान्य होते है। इसमें बिजली और पानी का बिल भी शामिल है। सभी दस्तावेज दिल्ली के होने चाहिए।
दिल्ली में बड़ी संख्या में किराएदार रहते हैं। ये वे हैं जो दूसरे राज्य से रोजगार के लिए दिल्ली में आते हैं। इस सवाल पर कि अगर उनके पास दस्तावेज नहीं होंगे, तो वह इलाज कैसे कराएंगे, दिल्ली सरकार का कहना है कि उनके पास कोई न कोई दस्तावेज होगा। सरकार का तर्क है कि एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली की आबादी 2.01 करोड़ है। दिल्ली में वर्तमान में 1.40 करोड़ से अधिक मतदाता है यानी 70 फीसदी लोगों का इलाज सिर्फ मतदाता पहचान पत्र से हो जाएगा।
कॉलेज आईडी मान्य नहीं : रेंट एग्रीमेंट, कॉलेज आई-कार्ड को नहीं माना गया है। सरकार का तर्क है कि इसे कोई भी बनवा लेता है। दिल्ली में जेएनयू, डीयू, आईपीयू जैसे बड़े विश्वविद्यालय के कॉलेजों में बड़ी संख्या में बाहर से छात्र आते हैं। वह हॉस्टल, किराये पर रहते हैं। उनके पास ना तो बिजली का बिल होता है ना पानी का। कॉलेज का आई कार्ड मान्य नहीं होने से दिल्ली सरकार के अस्पतालों में इलाज नहीं मिलेगा। इसपर सरकार का कहना है कि अगर उनके पास दिल्ली में किसी बैंक का अकाउंट होगा तो वह मान्य होगा। अन्यथा उन्हें केंद्र सरकार के अस्पताल में इलाज कराना होगा।