भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां लोगों को अपनों के लिए कम वक्त मिलता था वहीं लॉकडाउन में वक्त ही वक्त मिल रहा है। इस दौरान जहां पहले फेज में दंपतियों में नजदीकियां बढ़ीं। वहीं दूसरे लॉकडाउन में यह दूरियों में तब्दील होती गईं। इसकी वजह कमाई की चिंता में दोनों के बीच रार ने घरेलू हिंसा का रूप ले लिया। हालांकि अभी भी अनुपात में देखें तो यह आम दिनों से कम है। लेकिन बढ़ते मामले चिंता का सबब बने हुए हैं।

महिलाओं से जुड़े मामलों के लिए पांडेयपुर में बनाए गए वन स्टॉप सेंटर पर घरेलू हिंसा की आने वाली शिकायतें लॉकडाउन 1.0 से ज्यादा लॉकडाउन 2.0 में आए हैं। केंद्र प्रबंधक रश्मि दुबे ने बताया कि जहां लॉकडाउन से पहले आम दिनों में 50-55 से ज्यादा शिकायतें आती थीं। वहीं अप्रैल महीने में हमारे पास सिर्फ 8 शिकायतें आईं। जबकि मई महीने में इनकी संख्या बढ़कर 16- 17 हो गई।

वन स्टॉप सेंटर पर कार्यरत वर्तिका ने बताया कि लॉकडाउन के कारण ज्यादातर शिकायतें हमें फोन पर या संबंधित थाने के जरिए ही मिल पा रही हैं। हम भी फोन पर ही काउंसलिंग कर पा रहे हैं। केंद्र प्रबंधक रश्मि दुबे कहती हैं कि लॉकडाउन में आने वाली शिकायतों में महिलाओं से हिंसा का कारण पूछने पर पता चलता है कि ज्यादातर मामलों का कारण पारिवारिक क्लेश है।

मनोचिकित्सक डॉ. गरिमा गुप्ता बतातीं हैं कि लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के कई कारण हैं। समय बीतने के साथ पुरुषों में कमाई को लेकर तनाव बढ़ा रहा है। इससे वो तनावग्रस्त हो रहे हैं। थोड़ी बहुत कहासुनी में भी पुरुष आक्रामक होकर महिलाओं के साथ हिंसा कर रहे हैं। झगड़े बढ़ रहे हैं, ऐसे वक्त में जब पति पत्नी को साथ रहने का इतना मौका मिला है तो उन्हें समझदारी से रहना चाहिए। पुरुषों को भी घर के काम में महिलाओं का हाथ बंटाना चाहिए।

आर्य महिला पीजी कॉलेज की समाजशास्त्र विभाग की अस्सिटेंट प्रोफेसर डॉ. सुमन तिवारी बतातीं हैं कि हर बात पर परिवार के सभी सदस्यों की मानसिकता एक जैसी नहीं होती। ऐसे में अगर कोई और असहमति जताए तो इसका मतलब यह नहीं कि उससे मारपीट की जाए। इस वक्त परिपक्वता की जरूरत है। लड़ाई झगड़े के बजाय प्यार से रहें, ताकि बुरा वक्त आसानी से गुजर जाए।

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