यूपी की राजधानी लखनऊ में प्रवासी मजदूरों के साथ लापरवाही का मामला सामने आया है। यहां से कुछ प्रवासी मजदूरों को छत्तीसगढ़ जाना था लेकिन सभी को प्रयागराज की बस में बैठाकर वहां भेज दिया गया। यह लापरवाही छत्तीसगढ़ जाने के लिए डॉ. शकुंतला मिश्रा विश्विविद्यालय में बने आश्रय केन्द्र पर हुई।

इस केंद्र में मौजूद श्रमिकों में कई ऐसे भी थे जिन्होंने ट्रेन के लिए आवेदन किया था। इनका कहना है कि इन्हें कोई सूचना नहीं दी गई। जब ज्यादा दिन बीत गए तो ये सब शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय आश्रय केन्द्र तक आ गए। एक दिन पहले कुछ जागरूक नागरिकों ने नि:शुल्क बस मुहैया करा रहे स्वयं सेवकों से इनके लिए बात की। तय हुआ कि शनिवार दोपहर तक बस आएगी। इन श्रमिकों में कुछ रायबरेली रोड के आसपास की निर्माण इकाइयों से आए थे और कुछ फैजुल्लागंज से। सभी छत्तीसगढ़ जाने के लिए यहां इकट्ठे हुए थे लेकिन इन्हें अलग-अलग बसों में बैठाकर प्रयागराज भेज दिया गया।

गड़बड़ी की जांच करेगा प्रशासन:

जिला प्रशासन को इस गड़बड़ी का पता चला तो जांच शुरू हुई। एडीएम सिटी पूर्व केपी सिंह के अनुसार उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। अब आश्रय केन्द्र के कर्मचारियों से पता लगाया जा रहा है कि किसने छत्तीसगढ़ के श्रमिकों को प्रयागराज की बस में बैठाया। इसके अलावा दूसरे प्रांतों के श्रमिकों की नई सूची तैयार हो रही है, जिन्हें प्रशासन घर भिजवाएगा।

बसें बनीं श्रमिकों का सहारा
लॉकडाउन के दौरान लखनऊ में फंसे लोगों के लिए श्रमिक स्पेशल बसें सहारा बनी हैं। पैदल और ट्रकों में भरकर आने वाले श्रमिकों की संख्या कम होने के बाद अब लखनऊ में रह रहे श्रमिक शकुंतला मिश्रा विवि पहुंचकर बस पकड़ रहे हैं। अप्रवासी श्रमिकों के लिए चलाई गई इस नि:शुल्क बस सेवा से स्थानीय श्रमिकों को भी उनके गृह जनपद पहुंचाया जा रहा है। बसों के नोडल अधिकारी अमरनाथ सहाय बताते हैं कि पैदल और ट्रकों से घर जाने वाले श्रमिकों की संख्या कम हो गई है। अब स्थानीय मजदूर बस पकड़ने पहुंच रहे हैं। शनिवार को 30 बसों से लगभग एक हजार स्थानीय श्रमिकों को उनके घर भेजा गया।

13192 श्रमिक 259 बसों से भेजे गए
बीते 24 घंटों में 9 श्रमिक स्पेशल ट्रेन लखनऊ पहुंचीं। ट्रेनों से मुम्बई, पनवेल, रत्नागिरी और बोरीवली से 13 हजार 192 श्रमिक लखनऊ पहुंचे। यहां से 259 बसों द्वारा इन्हें घरों को रवाना किया गया। हालांकि इस दौरान बसों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया गया और एक बस में 35 से 40 श्रमिकों को बैठाकर रवाना कर दिया गया। जबकि 52 सीटर बस में 26 श्रमिकों को बैठाने के ही निर्देश हैं।

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