उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क में हाथी पुराने रास्तों पर लौट आए हैं। लॉकडाउन के दौरान जंगलों में पर्यटकों की गतिविधियां बंद होने और आसपास के रास्तों पर गाड़ियां नहीं चलने से हाथियों का झुंड पुराने गलियारों में लौटने लगा है।

कॉर्बेट के 1288 वर्ग किमी क्षेत्र में हाथियों की गणना चल रही है। गिनती कर रही टीम को पुराने कॉरिडोर पर वर्षों बाद हाथी दिखाई दिए हैं। हाथियों के झुंड वर्षों पहले चिह्नित कॉरिडोर से ही आना-जाना कर रहे हैं ।

जीव विशेषज्ञ एजी अंसारी बताते हैं कि हाथियों के कॉरिडोर से मोटर मार्ग विकसित किए गए, जिन रास्तों से हाथी गुजरते थे, वहां आबादी बस गई। पुराने रास्तों पर अड़चन देख हाथियों ने वैकल्पिक रास्ते बना दिए थे। कॉर्बेट में 1230 से अधिक हाथी देखे गए हैं।

उत्तराखंड के एलिफेंट कॉरिडोर
कांसरो-बरकोटी, चीला-बरकोटी, मोटोचूर-गोरी, रावसान-सोनानदी वाया बिजनौर, रावसान सोनानदी वाया लैंसडौन, मालानी-कोटा, चिलकिया-कोटा, दक्षिणी पातली दून, फतेहपुर गदगदिया, गोला रेणुका-गोलाई टांडा, किलपुरा खटीमा -सुरई

हादसों में जा रही थी जान
पुराने रास्तों पर अतिक्रमण होने से हाथी कॉर्बेट, रिंगोड़ा, गर्जिया, सुंदरखाल, तराई पश्चिम वन प्रभाग के हल्दुआ, हरिद्वार के चिड़ियापुर, बिजनौर आदि से आदि गुजरने लगे थे। यहां कई रेलवे ट्रैक और हाईवे से हाथियों को गुजरना पड़ता था। इस दौरान उनकी हादसों में जान गई है।

नेपाल तक जाते थे
राजाजी नेशनल पार्क से हाथियों का झुंड कॉर्बेट होते खटीमा के किलपुरा रेंज से नेपाल जाता था। नेपाल के शुक्लाफांटा से हाथियों का झुंड उत्तराखंड के जंगल में आता था। लॉकडाउन में हाथी पुराने रास्तों से आ जा रहे है। ऐसे में उत्तराखंड में नेपाल के हाथी भी नजर आ सकते हैं।

झुंड में रहना पसंद 
जीव विशेषज्ञ के अनुसार हाथी हमेशा झुंड में ही रहना पसंद करते हैं और वे हमेशा अपने ही बनाए पुराने रास्ते के जरिए ही आते-जाते हैं। हालांकि, अतिक्रमण होने पर अपने रास्ते भी बदल दिया करते है।

हाथी एक दिन में कई किलोमीटर तक झुंड के साथ चलते हैं। इस दौरान बाघ और अन्य वन्यजीवों से अपने बच्चों को बचाने के लिए हाथी बच्चों को झुंड के बीच में रखते हैं।

लॉकडाउन में हाथी वैकल्पिक रास्ता छोड़कर पुराने रास्ते पर लौट आए हैं। कॉर्बेट में हाथियों की गिनती चल रही है। हाथियों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
राहुल, निदेशक, जिम कॉर्बेट पार्क

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