जल्द ही फेलू दा किट से कोरोना टेस्ट होगा संभव

अगले चार हफ्तों में कोरोना टेस्ट करने वाली फेलू दा किट आ सकती है, सबसे कम लागत में बनी है फेलू दा किट, एक घंटे में देती है परिणाम, वरिष्ठ वैज्ञानिक देबोज्योति चक्रवर्ती और डॉक्टर सौविक मैती ने मिलकर तैयार किया है

कम लागत वाली फेलू दा किट के अगले चार हफ्तों यानि एक महीने में उपलब्ध होने की उम्मीद जताई जा रही है। फेलू दा किट एक घंटे में कोरोना वायरस का टेस्ट कर परिणाम देने में सक्षम है और इसकी लागत भी काफी कम है।

फेलू दा का नाम लोकप्रिय डायरेक्टर सत्यजीत रे की फिल्म के एक काल्पनिक पात्र पर रखा गया है। फेलू दा किट के जरिए सीआरएसपीआर जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, सार्स सीओवी-2 के जेनेटिक मैटेरियल की पहचान करता है।
फेलू दा किट को काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च और इंडस्टीट्यूट ऑफ जेनोमिक्स और इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक देबोज्योति चक्रवर्ती और डॉक्टर सौविक मैती ने मिलकर तैयार किया है।
डॉ. चक्रवर्ती ने बताया कि सीआरएसपीआर सिस्टम में एक केस 9 प्रोटीन होता है जो मरीज के शरीर में फैले सार्स-सीओवी 2 के जेनेटिक मैटेरियल पर प्रभाव डालने के लिए बारकोड किया जाता है। इसके बाद केस 9 और सार्स-सीओवी 2 के मिश्रण को पेपर स्ट्रीप पर अप्लाई किया जाता है, जहां एक नियंत्रण और एक टेस्ट की लाइन का इस्तेमाल करते हुए ये निश्चित किया जाता है कि टेस्ट सैंपल में कोरोना है या नहीं।

फेलू दा से टेस्ट करने में लगभग एक घंटे का समय लगता है। डॉ. चक्रवर्ती ने बताया कि ज्यादातर प्रयोगशालाएं पीसीआर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती हैं जो थोड़ी महंगी होती है। पेपर स्ट्रिप टेस्टिंग में लेवल-2 और लेवल-3 की टेस्टिंग लैब की जरूरत नहीं पड़ती, ये पैथ लैब में भी हो जाती है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के पूर्व महानिदेशक डॉ. निर्मल गांगुली ने बताया कि फेलू दा किट से टेस्ट करना बेहतर तरीका है। इस किट का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे किसी भी लैब में प्रयोग में लाया जा सकता है।

डॉ गांगुली ने बताया कि फेलू दा किट के इस्तेमाल पर लोगों को ट्रेनिंग दी जा सकती है, यह आसान है और पूरे देश में इस किट का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकता है। डॉ. चक्रवर्ती ने बताया कि किट का नाम फेलू दा रखना मात्र एक संयोग है।

उन्होंने बताया कि वो सत्यजीत रे के बहुत बड़े फैन हैं लेकिन ये नाम उनकी पत्नी ने उन्हें सुझाया, जो हालांकि बंगाली नहीं है लेकिन उनकी भावनाओं को अच्छे से जानती हैं। उन्होंने बताया कि फेलू दा सिर्फ कोविड-19 के लिए ही सीमित नहीं रहेगा।

डॉ. चक्रवर्ती के मुताबिक वो फेलू दा पर पिछले दो साल से काम कर रहे हैं ताकि किसी भी डीएनए-आरएनए की पहचान कर सकें। जनवरी के अंत में हमारी टीम ने फेलू दा पर कोविड-19 की टेस्टिंग के लिए काम करना शुरू किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here