सीबीआई में पारदर्शिता को बढ़ावा देने वाले एक अहम फैसले में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने भ्रष्टाचार के उन मामलों में शुरुआती जांच का खुलासा करने का आदेश दिया है जिन्हें 2014 से 2018 के दौरान जांच एजेंसी द्वारा बिना कोई प्राथमिकी दर्ज किए बंद कर दिया गया था।

आयोग ने यह आदेश देते हुए एक आरटीआई आवेदनकर्ता के उस रुख से सहमति जताई कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को अपने पास मौजूद उन रिकॉर्ड को दिखाने से छूट नहीं है जो भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से संबंधित हैं। अन्यथा सीबीआई को आरटीआई अधिनियम के दायरे से छूट है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि सूचना के अधिकार के तहत एजेंसी को मिली छूट के दायरे में प्राथमिक जांच के तहत भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित रिकॉर्ड नहीं आते हैं जो एजेंसी के पास उपलब्ध हैं।

सूचना आयुक्त दिव्य प्रकाश सिन्हा ने कहा, ”…आयोग सीपीआईओ को निर्देश देता है कि वो भ्रष्टाचार से जुड़े उन आरोपों से संबंधित प्राथमिक जांच संख्या, आरोपों का सारांश, शुरुआती जांच आरंभ करने और बंद करने की तारीख बताएं जिनमें 2014-18 के बीच एजेंसी ने जांच बिना नियमित मामला दर्ज किए बंद कर दी।”

आरटीआई आवेदन में भ्रष्टाचार के आरोप से से संबंधित विभिन्न ब्यौरों के साथ ही उन वजहों की भी जानकारी मांगी थी जिनके कारण मामलों की जांच बंद की गई। सीबीआई किसी शिकायतकर्ता द्वारा प्रथम दृष्टया लगाए गए आरोपों के आकलन के लिए पहले कदम के तौर पर प्राथमिक जांच शुरू करती है। अगर आरोपों में पर्याप्त गंभीरता नजर आती है तो एजेंसी मामले में आगे प्राथमिकी दर्ज कराती है अन्यथा प्राथमिक जांच को बंद कर दिया जाता है। प्राथमिक जांच एक आंतरिक दस्तावेज होती है और अदालतों में मामला बंद करने को लेकर कोई रिपोर्ट दायर नहीं की जाती।

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